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( १३६ ) जैन धर्म का स्वरूप-ले० स्वामी प्रात्माराम; भा० हि०, पृ० ४६, ३० १९०५।
जैन धर्म का हृदय-ले० जुगमन्दर लाल जैनी बैरिस्टर, अनु० मुन्शीलाल एम. ए , प्र० प्रात्मानन्द जैन ट्रैक्ट सोसाइटी अम्बाला, भा० हि०, पृ० १६, व० १६१६ ।
जन धर्म की उदारता-ले० प० परमेष्ठिदास, प्र० जौहरीमल जैन सर्राफ देहली, भा० हि०, पु० १०६, व० १६३६, प्रा० द्वितीय ।
जैन धर्म का उदारता-ले० ५० परमेष्ठिदास, प्र. जौहरीमल जैन देहली, भा० हि०, पृ० ६०, व० १६३४, प्रा० प्रथम ।
जैन धर्म की प्राचीनता-सपा० दीनदयाल जैन, प्र. जैसवाल जैन कार्यालय आगरा, भा० हि० पृ० ४६, व० १६२६, आ० प्रथम ।
जैन धर्म की प्राचीनता-प्र० जन सुधारक सघ देहली, भा० हि० पृ०१६ व १६४२, प्रा० प्रथम ।
जैनधर्म की विशेषताए-ले० ० शीतल प्रसाद, प्र. जैन मित्र मडन देहली, भा० हि०, पृ० २०, व० १६३८, प्रा० प्रथम ।
जैन धर्म के विषय में अजैन विद्वानों की सम्मितिर्या-सग्र० मा० बिहारीलाल, प्र. जैन धर्म मरक्षिणी सभा अमरोहा, भा० हि० पृ० १८, व० १९१५, प्रा० प्रथम।
जैन धर्म क्या है-ले०७० शीतल प्रसाद, प्र. जैन मित्र मडल देहली, भा० हि० पृ० १८ ।
जैन धर्म क्या है-ले० चम्पतराय वैरिस्टर, मनु० कामता प्रशाद, प्र. दिग० जैन पुस्तकालय सूरत, भा० हि०, पृ० २४, व० १९२०, पा० प्रथम ।
जैन धर्म पर अन्य धमों का प्रभाव-ले० नाथूराम प्रमी, प्र० आत्मनागृति कार्यालय जैन गुरुकुल व्यावर, भा० हि०, पृ. २६, व० १६३२ ।
जैन धर्म पर एक महाशय की कृपा-ले०प० हसराज शर्मा भा० हि०, पृ० ४१, व० १६१६ ।