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'जिनवाणी- निकला जो कुछ समय तक चलकर बन्द हो गया । मुनि जिन विजय जी द्वारा सम्पादित हिन्दी गुजराती अग्रेजी का श्वेताम्बर 'जैन साहित्य संशोधक' त्रैमासिक भी अत्यधिक महत्वपूर्ण पत्र था जो कुछ वर्ष चलकर बन्द हो गया । पडित दरबारीलाल सत्यभक्त के सम्पादन में बम्बई का 'जन जगत' भी कई वर्ष बहुत अच्छा निकला था । उपरोक्त पत्रो के अतिरिक्त और भी अनेक पत्र पत्रिकाए, विशेष रूप से सन् १९२० के पश्चात चालू हुई, जिनमे से अधिकतर अल्पाधिक काल तक चलकर बन्द हो गई । इस प्रकार छापे के प्रारम्भ से अब तक लगभग ढाई सौ जैन सामायिक पत्र पत्रिकाएं निकल चुकी हैं जिनमें से लगभग डेढ़सौ तो अस्तगत हो चुकी और एक सौ के लगभग अभी भी चालू है। प्रारम्भ से अब तक लगभग एक दर्जन सार्वजनिक पत्र पत्रिकामो का सञ्चालन अथवा सम्पादन भी जैनो द्वारा हुआ है।
विवरण सूची का संक्षिप्त सार प्रस्तुत पुस्तक जैन मुद्रित प्रकाशित पुस्तको, सामायिक पत्रो, साहित्यिक सस्थाओं, प्रकाशकों और लेखकों आदि की उस सक्षिप्त परिचयात्मक विवरण सूची की पूर्व पीठिका है जो कि हमने जुलाई सन् १९४७ मे तैयार की थी और जिसे इस पुस्तक के दूसरे भाग के रूप में प्रकाशित करने की योजना है। उक्त विवरण सूची मे सकलित तथ्यो से जो निष्कर्ष प्राप्त होते है वे निम्न प्रकार है
उक्त विवरण सूची मे २६८० पुस्तकों का उल्लेख है जिन्हें भाषा की अपेक्षा ६ विभागों में विभाजित किया गया है।
(१) प्रथम विभाग हिन्दी का है जिसमे संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश भी सम्मिलित है । इसमे कुल २०५२ पुस्तके जिनमें से--सस्कृत की १८०, प्राकृत की ४४, अपभ्रश १८, हिन्दी प्राचीन (सन् १८५० अथवा सं० १९२० के पूर्व निर्मित)--२७५, -प्राचीन ग्रन्थों के अर्वाचीन टीका अनुवादादि-३७७.