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पृष्ठ ४२ पर 'जन समाज के वर्तमान सामयिक पत्र लेख में उस समय पान ५६ पत्रो की सक्षिप्त परिचयात्मक सूची दी थी तथा जैन सिद्धान्त भास्कर भाग ५ किरण १, पृ० ३६ पर प्रकाशित अपने लेख 'भूतकालीन जैन सामयिक पत्र' में समाचार पत्रो के इतिहास पर सक्षित प्रकाश डालते हुए १०५ भूतकालीन तथा ६६ चालू पत्रों की नाम सूची दी थी। और जैन मिव वर्ष ५१, अङ्क ७ (ता. २२ दिसम्बर सन १६४६) में जैन समाज के समाचार पत्र शीर्षक के अन्तर्गत ५७ चालू पत्रो को जिनमे ३३ दिगम्बर और २४ श्वेतामार है तथा ६२ भूतकालीन पत्रों की जिनमे ६८ दिगम्बर और २४ श्वेताम्बर है एक सूची री है।
उपरोक्त विभिन्न सूचियों मे से किसी मे भी वे लगभग एक दर्जन सार्वजनिक पत्र सम्मिलित नही हैं जिनका सम्पादन, प्रकाशन अथवा संचालन जैनों द्वारा किया गया है और जिनमें से कई पत्र पर्याप्त लोक प्रिय भी रहे हैं।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि सामयिक पत्रों और पत्र कला की दृष्टि से भी अल्प संख्यक जैन समाज ने पर्याप्त उन्नति की है और वह किसी से पीछे नहीं है। यदि इसमें कोई दोष है तो यही कि जिन पत्रो की सख्या आवश्यकता से अधिक है, उनका पठन प्राय जैन समाज के भीतर ही सीमित होने से एक भी पत्र की ग्राहक संख्या उसे स्वनिर्भर करने के लिये पर्याप्त नहीं है। फल स्वरूप लेखकों और पत्रकारों की भी अत्यधिक दुर्दशा है ।
जहाँ तक पुस्तक साहित्य का सम्बन्ध है, उपरोक्त विवरण सूची मे जो २६८० पुस्तकें उल्लिखित हुई हैं उनके अतिरिक्त भी कम से कम दो ढ़ाई सौ ऐसी पुस्तके अवश्य निकल पायेगी जिनका कि साधनाभाव अथवा ज्ञात न हो सकने के कारण कोई उल्लेख नही किया जा सका। गत तीन वर्षों में भी (अर्थात् उक्त सूची के निर्माण करने के बाद से) लगभग एक सौ पुस्तके और प्रकाशित हो चुकी है जिनमे से अधिकाश हिन्दी की है और जिनमे से एक दर्जन से अधिक पर्याप्त उच्च कोटि के विशालकाय ग्रन्थ हैं। साथ ही उपरोक्त लगभंग ३००० पुस्तकें प्राय करके केवल दिगम्बर समाज द्वारा प्रकाशित पुस्तकें