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(१) साहित्यिक शोष, खोज, निर्माण, प्रकाशन, प्रचार प्रादि उद्देश्यों को लेकर सामाजिक द्रव्य से अथवा व्यक्तिगत ट्रस्ट आदि के द्वारा स्थापित एवं सञ्चालित जैन साहित्यिक सस्थाएं और ग्रन्थ-माला समितिये-३६.
(२) अन्य विविध धार्मिक सामाजिक जैन सस्थाए-~६१. (३) जैन व्यवसायी प्रकाशन और पुस्तक विक्रेता--३१. (४) जैन स्त्री पुरुष, व्तक्तिगत रूप से-२६० (५) अजैन सज्जन, सस्थाएं और प्रकाशक-२६.
पूर्णयोग ४४७. विषय विभाजन--की दृष्टि से उक्त पुस्तको की संख्या निम्न प्रकार है
(१) धर्म २७५, (२) सिद्धात एव तत्त्व ज्ञान १२२. (३) अध्यात्मिक ग्रन्थ १५९, (४) दर्शन एव न्याय शास्त्र ६४
(५) प्राचार शास्त्र १५२, (६) पुराण चारित्र ११६, (७) प्राचीन कथा साहित्य ७८, स्तोत्र स्तुति पद-भजनादि सग्रह-२११,
(९) पूजा प्रतिष्ठापाठ और तीर्थमहात्म्यादि १३६, (१०) मन्त्र तन्त्रादि ७. (११) नीति सुभाषितादि १६, (१२) तुलनात्मक अध्ययन, समीक्षा परीक्षा, खडन मडनादि १६५, (१३) साहित्य व्याकरण छन्द अलकार कोषादि ५७, (१४) विज्ञान गणित ज्योतिष निमित्त शास्त्र, वैद्यक, रत्न परीक्षा, वास्तुसार आदि १८,
(१५) इतिहास पुरातत्त्व राजनीति, जीवन चरित्र आदि १६५, (१६) भूगोल खगोल, यात्रा विवरण, स्थान परिचयादि ५५, (१७) काव्य नाटक उपन्यास कहानी आदि २२८, . (१८) समाज सुधार व शिक्षा (१९) स्त्री व बालकोपयोगी ७५,
(२०) महत्त्वपूर्ण भाषण व्याख्यानादि ५०, (२१) शेष विविध १०१. इस विषय विभाजन में अंगरेजी पुस्तके सम्मिलित नही की गई हैं। .
सामयिक पत्र पत्रिकाएं-अब तक लगभग अढ़ाई सौ जैन सामन