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के अत्यन्त विशद तुलनात्मक विवेचन करते चले पाये हैं बास्त्र से प्र० के० बी० पाठक और य. सतीशचन्द्र वि० भू० उक्त प्रयों के कालक्रम के विषय में बहुत कुछ लिखा था, किन्तु उसके पश्चात् अब इनर इतनी अधिक नबीन सामग्री प्रकाश मे मा रही है कि विद्वानरे को अपनी पूर्व निश्चित धारणामों में परिवर्तन करना पड़ रहा है। प्रो० एच० भार सापडिया ने गायकवाड़ ओरियंटन सीखेज (भाग १, बड़ोस १६४०) के मन्तर्गत स्वोपज्ञ वृत्ति एब मुनिचन्द्र कृत टीका सहित 'भनेकांत जय पताका' का सम्पादन किया । प० महेन्द्र कुमार ने अपने द्वारा सुसम्पादित 'मकलक' अन्यत्रय' x की भूमिका मे अकलक के समय, सखी तथा अन्य ममेक तथ्यो पर विद्वतापूर्ण प्रकाश डाला है। उन्ही के द्वास सम्पादित न्याय कुमुदचन्द्र दो भागों की स्वय उनके तथा प० कलाश चन्द्र द्वारा लिखित भूमिकामो में नवीन दृष्टि कोण एवं प्रचुर सामग्री होने के साथ ही साथ अकलक के समय सम्बधी भान्ति का भी प्राय. निरसन हो गया है । ५० महेन्द्रकुमार द्वार सम्पादित प्रमेय कमल मार्तण्ड तथा न्याय विनिश्चय विवरण के संस्करण भी महत्वपूर्ण हैं । सकल भारतीय न्याय शास्त्र मे निष्णात प्रज्ञाचक्षु प० सुखलाल संघबी अपनी गहरी पहुंच, ताजा दृष्टि कोण तथा खोज पूर्ण विश्लेषण के लिए प्रसिद्ध है । उन्हे तथा उनके साथियों को 'जैन तर्क भाषा' एव 'प्रमाण मीमासा' के उत्तम सस्करण सम्पादित करने का श्रेय है। उन्होंने सिद्धसेन दिवाकर के 'सन्मतितक' का भी गुजराती अनुवाद और विद्वत्तापूर्ण सपादन किया है, जिसका कि अगरेजी अनुवाद प्रो० अथवले तथा गोपानी ने किया है। पं० दरबारीमाल कोठिया ने धर्म भूषण की न्यायदीपिका तथा विद्यानन्द की आप्त-परीक्षा के उत्तम सम्पादन किये हैं। पं० जुमलकिशोर मुख्तार, समन्तभद्र के युक्तयान, शासन का अनुवाद और सम्पादन कर रहे हैं, सन्मतितर्क और सिद्धसेन दिवाकर सम्बंधी उनका लेख भी बहुत महत्त्वपूर्ण है । स्याहार मंजरी भीर मास्मिक्यनंदि कृत परीक्षा मुख सूत्र के सम्पादित संस्करण भी प्रकाशित हो चुके है।
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सिंधी जैन अन्यमानान०१२, अहमदाबाद, १६३६.