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उक्त विश्वविद्यालय आदि की तथा जैनंतर विद्वानों को जैनाध्ययन की ओर आकृष्ट करें और अपने साहित्य रत्नों को बाह्य समाज के लिये सुलभ कर दें, उनका यथोचित उपयोग किये जाने में प्रोत्साहन एवं सुविधाएं प्रदान करें तथा सभी महत्वपूर्ण पुरातन प्रन्थों के ऐसे संस्करण भी प्रकाशित कर दें जो सर्वग्राह्य हों ।
इस युग के प्रारम्भ के पूर्व से ही देश सार्वजनिक राष्ट्रीयता के प्रभाव से श्रोत प्रोत रहा है । सतत् आन्दोलनों और भीषण संघर्षो के पश्चात तथा अनेक त्याग और कष्ट सहन करके अब एक प्रकार से पराधीनता के पांश से मुक्त होकर स्वतंत्र वायुमंडल मे सास ले सका है । इस राष्ट्रीय आन्दोलन मे भी जैन समाज ने अपनी सख्या के अनुपात से कहीं अधिक सहर्ष योगदान दिया, और धन एव जन के यथेष्ठ बलिदान द्वारा स्वातंत्र आन्दोलन को सफल बनाने मे पूर्ण सहयोग और सहायता दी। राष्ट्रीयता के रग में डूबा हुआ साहित्य भी निर्माण किया । और आज भी प्रायः समग्र जैन समाज तन मन धन से राष्ट्रीय महासभा तथा राष्ट्र के सर्वमान्य कर्णधारो के साथ है । राष्ट्र की समस्त राजनैतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक प्रगतियो मे वह अभिन्न रूप से उनके साथ है, अपनी स्वतंत्र धार्मिक एवं सास्कृतिक सत्ता रखते हुये भी अखिल भारतीय राष्ट्र का अभिन्न एव अविभाज्य अग है ।
सामयिक पत्र पत्रिकाएं
भारतवर्ष मे छापेखाने के प्रारम्भ और इतिहास पर पीछे प्रकाश डाला जा चुका है। छापेखाने की स्थापना होने पर समाचार पत्रो का प्रकाशन स्वाभाविक था । अस्तु श्री वृजेन्द्रनाथ वन्द्योपाध्याय लिखित 'देशीय सामयिक पत्रेर इतिहास, 'खड १' के अनुसार भारत का सर्व प्रथम समाचारपत्र २६ जनवरी सन् १७५० ई० को 'बंगाल गजट' के नाम से अगरेजी भाषा मे प्रकाशित हुआ । यह पत्र साप्ताहिक था, हिकि साहब इसके