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कोटि की साहित्यिक शोष खोज निर्माण प्रकाशन मादि सम्बंधी संस्थानो का जन्म हो चुका है। किन्तु उनमे भी प्रबन्ध मोर व्यवस्था की दृष्टि से अन्य सामान्य जैन सस्थानो के ही अनेक दोष हैं। पृथक-पृथक उन सबकी शक्ति सीमित और अल्प है और व्यक्तिगत स्वार्थों अथवा ईर्ष्या द्वेषादि के कारण उनमे परस्पर सहयोग और एकसूत्रता नही हो पाती। फलस्वरूप साहित्य निर्माण और प्रकाशन प्रपति मे भी जितना योगदान वे कर सकती थी उसका मल्पांश मात्र ही हो रहा है।
फिर भी इस युग मे साहित्यिक, ऐतिहासिक, सास्कृतिक एव दार्शनिक खोज शोष का कार्य तथा ग्रन्थो का सम्पादन प्रकाशन बहुत कुछ व्यवस्थित एव प्रमाणीक ढग पर होने लगा है । विभिन्न उपलब्ध हस्तलिखित प्रतियो का मिलान करके, विविक्षित विषय सम्बन्धी पूर्वापर साहित्य के साथ तुलना पूर्वक सावधानी के साथ पाठ सशोधन, अनुवाद, व्याख्या, पावश्यक टिप्पणादि और विद्वत्तापूर्ण विस्तृत विवेचनात्मक प्रस्तावनाओ सहित महत्त्वपूर्ण प्राचीन ग्रन्थों के सुसम्पादित सस्करण प्रकाशित होने लगे है । दिगम्बरो के प्राचीनतम् मागम साहित्य धवलादि टीकाओ सहित षटखडागम, कषाय पाहुड, महाबन्ध प्रादि ग्रन्थराजो के भी उपरोक्त प्रकार सुसम्पादित सस्करण प्रकाश में आ रहे हैं । प्राचीन जैन अपभ्रश साहित्य का भी उद्धार हो रहा है । कितने ही अपभ्रश ग्रन्थ प्रकाश मे मा गये हैं, जिससे कि हिन्दी भाषा के विकास और इतिहास सम्बन्धी विचारों मे भारी क्रान्ति उत्पन्न हो गई है । हिन्दी के पुरातन जैन कवियो पौर लेखकों का साहित्य भी प्रकाश मे मा रहा है । जैन धर्म, जैन दर्शन, जैन सघ, जैन साहित्य, राजनीति में जैन नेतृत्व प्रादि विषयो पर विविष भाषाओं मे स्वतन्त्र ऐतिहासिक ग्रन्थ, शिला लेख संग्रह, प्रशस्ति संग्रह विज्ञप्ति पत्रसग्रह, अन्धसूचिये, अन्य कोष, उबरण कोष आदि तथा
त्ति विज्ञान, स्थापत्य, चित्रकला पावि विविध कलाओं मोर गणित ज्योतिष चिकित्सा विज्ञान प्रादि विविध विज्ञानों तथा सामान्यतया जैन सांस्कृतिक देनी