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का स्थायी फंड श्री वाडीलाल मोतीलाल शाह के उद्योग से केवल जनों द्वारा प्रदत्त था और इससे हिन्दी के उत्तमोत्तम ग्रन्थ केवल लागत मूल्य से बेचे जाने की योजना थी। इन्दौर की मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति को भी जैनों से कई हजार रुपया प्राप्त हुआ था। खण्डवे की हिन्दी ग्रन्थ प्रसारक मण्डली के उत्साही संचालक एक बा. माणिकचन्द्र जैनी वकील थे और पारा की नागरी प्रचारिणी सभा के प्राण बा. जैनेन्द्र किशोर थे, इत्यादिः। हिन्दी जैन साहित्य के प्रकाशन मे वम्बई के जैन प्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, जैन साहित्य प्रसारक कार्यालय तथा रामचन्द्र जैन शास्त्रमाला ने प्रमुख भाग लिया। धार्मिक से अतिरिक्त विषयो पर लिखने वाले लगभग दो दर्जन जैन सुलेखक विद्यमान थे और उनकी सख्या मे निरन्तर वृद्धि हो रही थी। ___ इस प्रकार इस युग मे निम्नोक्त विविध प्रकार का साहित्य प्रकाश मे
पाया
(१) प्राचीन सस्कृत प्राकृत ग्रन्थों के सम्पादित सस्करण:मूल मात्र अथवा टीका अनुवादादि सहित । उल्लेखनीय सम्पादक अनुवादक टीकाकार आदि-बा० सूरजभान, प० पन्नालाल बाकलीवाल, ५० पन्नालाल सोनी, उदयलाल काशलीवाल, ५० वशीघर शास्त्री, प० खूबचन्द शास्त्री, पं० लालाराम शास्त्री, प० मनोहर लाल, प० गजाधर लाल, जे एल. जैनी, बा० ऋषभदास वकील, ला मुन्शी लाल, मुनि माणिक जी, प्रो ए सी चक्रवर्ती, अ. शीतल प्रसाद, शरच्चन्द्र घोषाल, प० नाथूराम प्रेमी इत्यादि । पुरातन हिंदी जैन साहित्य को प्रकाश मे लाने का अधिकतर श्रेय बाकली वाल जी और प्रेमी जी को है। प्रेमी जी ने तो हिन्दी साहित्य सम्मेलन के जबलपुर में होने वाले सप्तम अधिवेशन मे 'हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास' शीर्षक एक विस्तृत निबन्ध भी पढ़ा था जो जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई से सन् १९१७ में पुस्तकाकार प्रकाशित हुआ। - (२) प्राचीन ग्रन्थों की समीक्षा परीक्षाः-साहित्यक, सैद्धान्तिक एवं ऐतिहासिक विश्लेषण सम्बन्धी साहित्य । उल्लेखनीय लेखक-40 जुगलकिशोर मुख्तार, बा० सूरजभान वकील, प० नाथूराम प्रमी।"