________________
हुई । इस प्रकार के विश्लेषण से नाम साम्ब के कारण विभिन्न प्राचार्यों की रचनाओं को उसी नाम के किसी एक ही प्रसिद्ध प्राचार्य की कृति समझ लेना जैसी सर्व प्रचलित भ्रान्तियों का निराकरण हुमा । अंधकार प्राचार्यों के समय, इतिवृत्त एवं कार्य कलापों पर प्रकाश पड़ा, विशेष सैज्ञान्तिक विषयों पर विभिन्न प्राचार्यों की विभिन्न मान्यतायें रही हैं, ऐसी बातें भी प्रकाश में माई। विशेष रूप से जनहितैषी' मासिक ने इन प्रवृत्तियों में पर्याप्त एवं सफल दान दिया। और इस प्रकार सुव्यवस्थित जैनाध्ययम का बीजारोपण हुमा तथा जन धार्मिक एवं साहित्यक इतिहास की सामग्री, फुटकर एवं प्रसम्बर रूप में ही सही, शनैः शन. एकत्रित होने लगी।
सस्थानों का भी प्रसार हुप्रा । दि० जैन महासभा की बम्बई आदि प्रान्तों में शाखाएं खुलीं । भारतवर्षीय दि० जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी तथा प्रान्तीय और स्थानीय तीर्थ क्षेत्र कमेटियों की स्थापना हुई। भारत जैन महामण्डल, जन पोलिटिकल कान्म स, दि० जैन शास्त्रार्थ संघ अम्बाला, जीव दया प्रचारिणी समा प्रागरा, जैन मित्र मंडल देहली, भारत वर्षीय दि. जैन अनाथ रक्षक सोसाइटी देहली, और अन्त मे महासभा की नीति से मतभेद होने के कारण उसके कतिपय सदस्यो द्वारा सन् १९२३ मे अखिल भारत वर्षीय दि० जैन परिषद, इत्यादि सस्थानो की स्थापना हुई । इन सभी सस्थाओ ने अपनेर कार्य क्रम के अनुकूल साहित्य के निर्माण और प्रकाशन मे पर्याप्त सहयोग दिया।
जहाँ तक हिन्दी की सामान्य उन्नति का प्रश्न है जैनों ने उस में भी स्तुत्य योग दान किया। हिन्दी के तत्कालीन सार्वजनिक पत्रो में मि० जैन वैद्य का सुप्रसिद्ध 'समालोचक', देहली के सेठ माठूलाल का साप्ताहिक 'हिन्दी समाचार', देहरादून के लागुलशनराय का 'भारत हितैषी' इन्दौर के बा० सुख सम्पत्तिराय भडारी के 'मल्हारि मार्तण्ड विजय' आदि और बम्बई से प. पन्नालाल बाकलीवाल का हिन्दी हितैषी' श्रेष्ठ कोटि के पत्र थे। बम्बई हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय और हिन्दी गौरव ग्रन्थ माला के स्वामी व संचालक जैनी थे । मालरा पाटण की राजपूताना हिन्दी साहित्य समिति का लगभग बारह हजार रुपये