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उद्देश्य स्थान कार्य क्षेत्र सभी में परिवर्तन क
मदर के बाद नवीन शासन व्यवस्था की स्थापना के साथ ही साथ ब्राह्मरण जैन विद्वेष एक अन्य दिशा मे भी चरितार्थ हुआ । विदेशी शासकों की अन्भिज्ञता का अनुचित लाभ उठाकर सनातनी हिन्दुओं ने स्थान स्थान में जैन रथोत्सव और मन्दिर निर्माण का भी विरोध किया और जैनी दण्डिनम् जैसी अत्यन्त प्राक्षेपपूर्ण पुस्तकें प्रकाशित की। उभय पक्ष मे मुकदमे बाजियों भी हुई, और तत्सम्बधी खडन मडनात्मक साहित्य भी प्रकाशित हुआ । किन्तु तत्कालीन सरकार ने सर्व धर्म स्वातन्त्र्य तथा किसी के धार्मिक मामलो मे हस्तक्षेप न करने की अपनी नीति स्पष्ट घोषित करदी थी जिसके फलस्वरूप जैनी इस आक्रमण से भी अपने धार्मिक सत्त्वो की रक्षा करने मे सफल हुए ।
बा9 सूरज भान जी वकील को जैन समाज का दादा भाई नौरोजी ठीक हो कहा जाता है । उनकी समाज सेवा का काल इस युग मे सर्वाधिक की होने के साथ ही सर्वतोमुखी भी रहा है । उन्होने अपने उत्साही सहयोगिनों के साथ समाज मे शिक्षा प्रचार करने का, विशेषकर स्त्रियो और बालिका की शिक्षा का, जिसका कि विरोध स्थिति पालक दल छापे की भाषि ही दृढ़ता के साथ कर रहा था, बीड़ा उठाया । स्थान-स्थान में जाकर प्रार करना, व्याख्यान देना, शास्त्र का प्रक्त और स्वाध्याय प्रेम बढ़ाना, बाल एवं कन्या पाठशालायें खुलवाना, छोटे २ सरल ट्रैक्टों तथा व्याख्यान मालाओं द्वारा सामाजिक कुरीतियों को दूर करने का प्रयत्न करना आदि अनेक समयम प्रोग्राम इन्होने अपना बाट सूजभाव की वे स्वयं अपने सम्पादकत्व में 'जैन ज्ञान प्रकाश' (हिन्दी) 'जैच हित जपदेशक' (उ) जैसे समार पत्र निकाले । सन १६७६ से १ वृत्तीलान, मुब्बी मुकन्दलाल पं प्यारे बाल आदि के सहयोग से सभा की स्थापना हुई र 'जट' (दिल्ली) ला
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