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एकवोसमी सीध
द्वारा राजा जनकका राज्य ध्वस्त कर दिया गया ||१२||
[ ६ ] जनक और कनक दोनों भाई दुर्दर्शनीय बर्बर, शबर, पुलिन्द और म्लेच्छों द्वारा घेर लिये गये। उन्होंने भारी आशासे, जिनके बालक सहायक हैं, ऐसे राजा दशरथ के पास लेखपत्र भेजा । दशरथ भी नगाड़ा बजवाकर तैयार होने लगे । तब लक्ष्मण सहित राम विरुद्ध हो उठते हैं कि हे पिता, मेरे जीते हुए तुम जा रहे हो। मैं शत्रुको मारता हूँ, आप हाथ ऊँचा कर दें (हाँ भर दें ) तच राजा दशरथने कहा- तुम अभी बालक हो, अभी केलेके खम्भेकी गाभकी तरह सुकुमार हो, तुम अभी राजाओंसे क्या लड़ोगे ? मतवाले हाथियों के समूह - को किस प्रकार भग्न को शत्रुओं पर कैसे ले जाओगे, अपने श्रेष्ठ अश्वको अश्वों तक कैसे ले जाओगे ? तब राम कहते हैं - हे तात ! लौट जायें, जहाँ हम समर्थ हैं, वहाँ तुम क्यों प्रवृत्त हो ? क्या बालसूर्य अन्धकारको नष्ट नहीं करता ? क्या बाल दावाग्नि वनको नहीं जलाती ? क्या बाल सिंह हाथीको चूर-चूर नहीं करता ? क्या बाल सर्प नहीं काटता है ||१-९शा ?
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[७] राजा दशरथ लौट पड़े । जिन्होंने दूरसे ही म्लेच्छोंके महायुद्ध की सम्भावना कर ली है, ऐसे राघवने भी कूच किया । एक तो वह खुद दुःसह थे, और फिर दूसरा लक्ष्मण था । एक पवन था, तो दूसरा आग। वे दोनों ही, जिसके रथचर, घोड़े, योद्धा, गजादि, वाहन हैं, ऐसी म्लेच्छ सेनासे भिड़ गये | लम्बे तीरोंसे उन्होंने शत्रुओंको सन्तप्त कर दिया। उन्होंने जनक और कनक ( दोनों भाइयों ) का उद्धार किया । युद्धके आंगन में तम नामका राजा दौड़ा जो कि बवर, शबर और पुलिन्दोंका प्रधान था । उसने कुमारके रथको चूर-चूर कर दिया। छत्र छिन्न-भिन्न कर दिया और धनुषके दो टुकड़े कर डाछे । तब