Book Title: Paumchariu Part 2
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ एकवीसमो संधि [४] यह सुनकर, जिसने पिताको सन्तुष्ट किया है ऐसे पृथुश्रीकी पुत्री कैकेयीने रथवर हाँका। दशरथने भी तीरोंसे सेनाको जीत लिया और हेमप्रभ सहित हरिवाहनको नष्ट कर दिया। कैकेयीसे विवाह कर लिया। उसे महावर दिये । अयोध्यापुरीका राजा कहता है-"हे सुन्दरि, मांग लो, माँग लो, जो अच्छा लगता है।" तब शुभमतिकी पुत्रीने प्रणाम करके कहा, "हे देव, आपने दे दिया। जब मैं माँगू तर आप अपने सत्यका पालन करना ।" इस प्रकार धातचीत करते हुए वे दोनों धम-कणसे परिपूर्ण कौतुकमंगल नगर में रहने लगे । बहुत दिनोंके याद उन्होंने अयोध्या नगरीमें प्रवेश किया तथा इन्द्राणी और इन्द्र के समान अपने राज्यपर प्रतिष्ठित हो गये । दशरथके समस्त कला-कलापसे परिपूर्ण चार पुत्र उत्पश्न हुए। अपराजितासे रामचन्द्र, सुमित्रासे लक्ष्मण, धुरन्धर भरत कैकेयीसे और सुप्रभा रानीसे शत्रुघ्न ।।१-९|| [५] उस राजाके चार पुत्र इस प्रकार थे मानो महीभागके महासमुद्र हों। मानो ऐरावत महागजके दाँत हो, मानो सज्जनसमूहके मनोरथ हों। उधर जनक भी मिथिला नगरीमें प्रविष्ट हुए। समद वह विदेहके राज्य में प्रतिष्ठित हो गये । उन दोनोंके भी सीता सहित श्रेष्ठ विक्रमका बीज भामण्डल उत्पन्न हुआ। बिना किसी विलम्बके,अपने पूर्व बैरकी याद कर किसी देवके द्वारा अपहरण कर वह विजयाधैं पर्वतको दक्षिण श्रेणीमें ले जाया गया। वहाँ प्रचुर सफेद चूनेकी पंकसे धवल रथनूपुरचक्रवाल नगर में चन्द्रमाके समान उज्ज्वल मुखबाले उस स्वजन चन्द्रगति विद्याधर के नन्दनवनके समीप पिंगल नामक अमरेन्द्रने फेक दिया। राजा चन्द्रगतिने उसे रानी पुष्पावतीको सौंप दिया। इसी बीच हिमचन्त और विन्ध्यामें रहनेवाले बर्थर शबर और पुलिन्दो तथा महादवीके निवासियों

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 379