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जबकि सोये होते हो या कि फिर सपना देखो जबकि तुम जागे होते हो इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता; तुम साक्षी बने रहते हो। तुम बने रहते हो संसार में, लेकिन अब संसार तुममें प्रवेश नहीं कर सकता। चीजें हैं वहां, लेकिन मन नहीं होता चीजों में, और चीजें नहीं होती मन में अकस्मात साक्षी उतर आता है और हर चीज बदल जाती है।
यह बहुत - बहुत सीधा है यदि एक बार तुम इसका राज जान लेते हो तो, अन्यथा यह लगता है बहुत - बहुत कठिन, लगभग असंभव ही कि कैसे जागो जब सपना चल रहा हो तो? यह लगता है असंभव, लेकिन है नहीं। इसमें लगेंगे तीन से नौ महीने तक यदि तुम हर रात सोने लगो और जब नींद आने लगे, तो तुम प्रयत्न करो सचेत होने का। लेकिन ध्यान रहे, सक्रिय ढंग से कोशिश मत करना सचेत होने की अन्यथा तुम सो ही न पाओगे एक निफिय होश बन जाना खुले, स्वाभाविक, विश्रांत, मात्र देखते हुए एक कोने से। इसके बारे में बहुत क्रियाशील नहीं, वरन मात्र निष्किय जागरुकता, बहुत संबंधित नहीं किनारे बैठे हुए हो, साथ नदी बह रही है और तुम केवल देख रहे हो। तीन से लेकर नौ महीने लगेंगे इसमें ।
फिर किसी दिन नींद तुम पर उतर रही होती है किसी धुंधले आवरण की भांति काले परदे की भांति, जैसे कि सूर्य अस्त हो गया हो और रात उतर रही हो। यह तुम्हारे चारों ओर ठहर जाती है, लेकिन भीतर गहरे में एक लौ जलती रहती है। तुम देख रहे होते हो मौन, निष्कंप हुए। फिर सपनों का संसार प्रारंभ हो जाता है तब बहुत नाटक घटते हैं, बहुत से मनोनाटक और तुम देखते चले जाते हो। धीरेधीरे भेद अस्तित्व में आता है। अब तुम देख सकते हो कि कौन से प्रकार का सपना देख रहे हो तुम। फिर अचानक एक दिन तुम जान लेते हो कि यह वैसा ही है जैसा जागने के समय होता है। इनकी गुणवत्ता में कोई भेद नहीं सारा संसार भ्रममय तो हो चुका होता है और जब संसार भ्रममय होता है केवल तब साक्षी होता है वास्तविक । यही अर्थ होता पतंजलि का जब वे कहते हैं, 'उस ज्ञान पर भी ध्यान करो जो आता है निद्रा के समय' और वह तुम्हें बना देगा बोधमय व्यक्ति ।
ध्यान करो किसी उस चीज पर भी जो कि तुम्हें आकर्षित करती हो ।
ध्यान करो अपनी प्रेमिका के, अपने प्रेमी के चेहरे पर - ध्यान करो। यदि तुम प्रेम करते हो फूलों से तो ध्यान करना गुलाब का ध्यान करना चांद का या जो भी तुम पसंद करते हो उसका यदि तुम्हें प्रेम है भोजन से तो ध्यान करो भोजन पर क्यों कहते हैं पतंजलि कि .... जो कुछ तुम्हें आकर्षित करता हो। क्योंकि ध्यान कोई जबरदस्ती का प्रयास नहीं होना चाहिए। यदि यह जबरदस्ती का होता है तो यह बेकार होता है। एकदम शुरू से ही जबरदस्ती से लादी हुई बात तुम्हें कभी स्वाभाविक नहीं बनायेगी। बिलकुल शुरू से ही कोई ऐसी चीज ढूंढना जो तुम्हें आकर्षित करती हो। कोई जरूरत नहीं