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पार्श्वनाथ
कर्म ही लब अनर्थों के मूल है। उनका उन्मूलन करना ही मेरा कर्तव्य है। सर्प पर क्रोध करना निरर्थक ही नहीं भविष्य में हानिकारक है। वह सी कर्मी का मारा है। संभव है कभी किसी भव में मैंने उसे कष्ट पहुँचाया हो और उसका ऋण अब तक न चक पाया हो । आज उस ऋण से मुक्त हो गया। एक भार कम हुआ।' इस प्रकार समता-भाव के साथ विप-वेदना को सहन करके हाथी ने अपना आयु पूण किया।
तृतीय जन्म। जैस एक विद्यार्थी लगातार वर्ष भर परिश्रम कर अपनी योग्यता की वद्धि के लिए प्रयत्न करता है और परिक्षा में उत्तीर्ण होने पर अपने परिश्रम को सार्थक समझता है उसी प्रकार जीवन में दान, पुण्य, सयम, व्रत, सामायिक आदि-आदि जो धार्मिक अनष्टान किये जाते है उनकी सार्थकता तब होती है जब व्यक्ति मत्य के प्रसग पर समता भाव रख कर आगामी भावो को सुधारता है। जीवन में जो धर्म के सुन्दर संस्कार अन्तरात्मा पर अंकित होते जाते है उनसे सत्य स्वयं सुधर जाती है। हाथी के संबर मे यही हुआ। वह अत्यंत लाम्य भाव मे तन्मय रहा अन मरकर सहस्रार स्वर्ग मे सत्तरह सागर की आयुवाला. देवता हुआ। ____ अन्तर्मुहूर्त मे अर्यात ४८ मिनट के भीतर ही वह देव नवयविक होगया। उनके क्रिय शरीर के सौन्दर्य का वर्णन करना अशक्य है । उसका रूप लावण्य दिव्य हीथा । कानो से कुण्डल, मस्तक पर मणिमय मुजुट, भुजाओ मे वाजवन्द, गले मे सुन्दर. सार, गलियो हे मुद्रिकाएँ, कटि मे स्वर्ण-मेखला, आदि लोको