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पार्श्वनाथ सुशोभित हो रहा था। दोनो ओर चॅवर ढोरे जा रहे थे। ओवर एकदम स्वच्छ-उज्वल थे। जैसे धर्मध्यान और शुक्लध्यान हो । शिविका के आगे वन्दी-वृन्द जयजयकार करता हुआ चल रहा था। सजल मेघ के सम्गन गंभीर ध्वनि करने वाले तरह-तरह के बाघों की ध्वनि से सारा नगर व्याप्त होगया था। कुलीन स्त्रियां मंगलगान गाती चल रही थी। चॅवर-छत्र आदि राजचिह्नो से यक्त महाराज अश्वसेन हाथी पर सवार होकर चल रहे थे। धीरे-धीरे चलती हुई सवारी नगर के मध्य भाग में पहुंची। नागरिक जन इतनी उत्कठा से सवारी देखने के लिए इकट्ठे हुए जैसे कोई अद्भुत-अष्टपूर्व आश्चर्य देखने के लिए आते हैं। कोई-कोई सवारी का मनमोहक हय देखने के लिए मकानो की ऊंची छत पर चढ़ गये, जैसे ठंड से सताये हुए वानर वृक्ष के ऊपरी भाग पर चढ़ जाते है । काई इकट्ठे होकर कुमार के मुख की ओर टकटकी लगाकर देखने लगे, जैसे चकोर चन्द्रमा की ओर देखते है। वहतेरे लोग मार्ग के दोनो ओर कतार बाध कर सड़े होगय । जैसे एक लोक से दूसरे लोक में जाने वाले सूर्य के साथ उसकी रश्मिया चली जाती है उसी प्रकार नागरिक जन भगवान के साथ-साथ जाने लगे। इसी प्रकार स्त्रिया भी भएट-के-झुण्ड बनाकर कुमार की छबीली मूरत देखने लगी। जैसे उमानपान की आवाज सुनकर वानरी अपने बच्चे को पेट से