Book Title: Parshvanath
Author(s): Chauthmal Maharaj
Publisher: Gangadevi Jain Delhi

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Page 149
________________ ૬ पार्श्वनाथ किस कर्त्तव्य की अवहेलना करके किसे अपनाया जाय १ किसी भी एक कर्त्तव्य का त्याग करने से मैं कर्त्तव्य भ्रष्ट हो जाऊँगा ! फिर क्या उपाय किया जाय ? यह कैसी उलझन है । इस प्रकार सोचते-सोचते महाराज मेघरथ को एक उपाय सूझ गया । उनके मन मे कुछ शान्ति हुई और चेहरे पर प्रसन्नता प्रगट हो गई । उन्होंने वाज़ से कहा- 'भाई बाज्र ! शरणागत की रक्षा करना राजा का कर्त्तव्य है और मैं विशेष रूप से इस कर्त्तव्य का पालन करता हूँ । तुम्हारा शिकार मेरे शरण मे गया है । अव तुम्हें नहीं लौटा सकता ।' वाज ने कहा – महाराज ! आप बड़े न्यायपरायण और दयालु रूप से प्रसिद्ध है । पर देखता हूँ कि आप मेरे प्रति न तो न्याय व्यवहार करते है और न दया ही दिखलाते हैं । मेरा शिकार मुझे सौंप देना आपका कर्त्तव्य है । मैं 1 भूखा हूँ ।' राजा मेघरथ- 'तुम भूखे हो तो उत्तम से उत्तम भोजन मॅगवाचे देता हूँ । इसके अतिरिक्त कबूतर के बदले जो कुछ चाहो, देने को प्रस्तुत हूँ । मगर शरणागत का परित्राण होना चाहिए ।' 1 बाज - 'महाराज ! मुझे आपके उत्तम भोजन की आव श्यकता नहीं है । मैं मांसभक्षी हूं । मांस ही मेरा भोजन है । क्या आप कबूतर के बदले मुँह माँगी वस्तु देने को सचमुच तैयार हैं ? राजा मेघरथ- 'प्राणों का बलिदान करके भी मैं अपने वचन की रक्षा करने से नहीं हिचकता ।' शूरवीर पुरुषों के 'प्राण जायॅ पर वचन न जाहीं ।' वाज - यदि आप अपने वचन पर इतने दृढ़ हैं, तो

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