Book Title: Parshvanath
Author(s): Chauthmal Maharaj
Publisher: Gangadevi Jain Delhi

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Page 153
________________ २३० पार्श्वनाथ पशु-पक्षियों की तो बात ही क्या, देवता भी नतमस्तक होते है। अनेक ऋषि-मुनि भी कभी-कभी इस आकर्षण के शिकार हो जाते है। इसने सारे संसार पर अपनी मोहिनी माया फैला रक्खी है । इसके विषम पाश में पड़ कर आत्मा विविध प्रकार की विपत्तियां भोग रहे है। फिर भी उन्हें चेत नही है । अतएच ब्रह्मचर्य का पालन करना दुष्कर हो गया है। परन्तु इस दुष्कर अनुष्ठान का सेवन करने वाले उत्तम पुरुष ही सुख, शान्ति, सतोप और सयम के पात्र होते है । ब्रह्मचारी पुरुष यशस्वी होता है, तेजस्वी होता है और देवता भी उसके चरण-कमलो मे मन्तक नमाने है। देवदाणवगंधव्या, जक्खरखस किन्नरा। चंभयारि नमसंति, दुक्करं जे करंति ते ॥ अर्थात्-चमचर्य पालन करने वाले महापुरुष को देव, दानव, गंधर्व, यक्ष, राक्षम और किन्नर भी प्रणाम करते है। दुप्फर ब्रह्मचर्यधारी को देवता नमस्कार करते है, इतना ही नहीं, किन्तु मुक्ति-वध भी उसे बरा करने के लिए तत्पर रहती है।

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