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पाश्वनाथ
बन गये। इस उम्र पाप के कारण उसके शरीर मे दाह ज्वर हो हो गया और अन्त मे तीव्र वेदना के साथ मर कर वह छठे नरक से उत्पन्न हुआ।
वसन्तसेनाने मोह के वश होकर पति-वियोग के कारण आग मे जल कर अपने जीवन का अन्त कर दिया । अनेक अज्ञानी प्राणी, विधवा के अग्नि-प्रवेश को संगत मानते और आग में जलने गती स्त्री को 'सती होना' कहते हैं। यदि सचमुच आग मे जलने पर ही स्त्री सती होती हो, तो आग से न जलने वाली सधवा स्त्री कोई भी सती न कहलाएगी। पर वास्तव मे सतीत्व का यह अर्थ नहीं है। जो स्त्री अपने पति के अतिरिक्त अन्य पत्यो पर पिना-भ्राता या पत्र का भाव रखती है, जो एक देश ब्रह्मचर्य का पालन करती है, जो अपने धर्म-विरुद्ध कुलाचार का पलन करती है, व्ही न्त्री सती है। विधवा होने के पश्चात् अथवा नववा-अवस्था में ही जो पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत का अनुष्ठान करती है, वह महानतो का पद पाती है। आग मे जल मरना सतीत्व का चिह नहीं है । वह तो तीव्रतर मोह का फल है। इस मोह के कारण दिया जाने वाला आत्मघात, दुर्गति में ले जाता है। बलदेना ने अात्मघात किया, इसलिए उसे भी छठे नरक मे उत्पन्न होना पड़ा।