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पार्श्वनाथ कहे और किसे भला कहे ? जिसे बुरा कहता है वही रूठ जाती है, मुँह फैलाती है और झगड़ने के लिए तैयार हो जाती है । अन्त मे राजा ने उसी अपराधी के ऊपर इस झगड़े के निर्णय का भार छोड़ दिया। अपराधी बुलाया गया। उससे राजा ने कहा'चारों रानियों ने तुम्हारे ऊपर उपकार किया है। यह तो निर्विवाद है, पर पर विवादग्रस्त बात तो यह है, कि किस रानी ने सब से अधिक उपकार किया है ? इस विवाद का निपटारा तुम्हें करना है। बताओ तुम किसका उपकार सब से अधिक समझते हो ?' अपराधी ने कहा-'अन्नदाता! प्रश्न अत्यंत सरल है और जितना सरल है उससे भी अधिक कठिन है। समस्त महारानियों ने मुझ पर अत्यन्त उपकार किया है । उसमे तरतमता करना मुझे अच्छा नहीं लगता। फिर भी राजाज्ञा से प्रेरित होकर मुझे निर्णय करना होगा। प्रथम तीन महारानिया ने मुझे पकवान खिलाये और रुपये भेट मे दिये। परन्तु मृत्यु की विभीपिका के सामने न मै पकवानों का स्वाद ले सका, न रुपयों से ही मुझे प्रसन्नता हुई। उस समय जीवन का ही अन्त उपस्थित था, तो रुपये लेकर उनसे क्या करता ? चौथी महारानी ने न पकवान खिलाये, न रुपये दिये पर उन्होंने मुझे प्राणदान दिया है । इस दान से मुझे जो आनन्द हुआ उस का अनुमान भुक्तभोगी ही कर सकते हैं। अत नमा कीजिये । महाराज और महारानियो में चौथी महारानी के उपकार को मर्वश्रेष्ठ समझता हूँ। मैं उनका आजीवन दास हूँ और आप सब का भी आजीवन कृतज्ञ हूँ। अपना जीवन देकर भी से उन से अना नहीं हो सकता। इतना कह कर भतपर्व अपराधी ने चौथी महारानी को प्रणाम करने के लिए अपना मस्तक
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