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पारवनाथ और जो धारणा हड़ न हुई हो वह स्मृति को उत्पन्न करने मे असमर्थ रहती है। पूर्वजन्म के स्मरण की घटनाएँ इस समय भी सुनी जाती है और पूर्वकाल मे भी होती थीं। कई विशिष्ट तर वारणाशाली जीवो को अनेक पूर्वजन्मो का स्मरण हो जाता है। यह सब मतिज्ञान है।
पूर्वोक्त अवग्रह आदि चारों प्रकार के मतिज्ञान पांचो इंद्रियों से और मन से उत्पन्न होने है । अवग्रह कभी स्पर्शन-इन्द्रिय से अन्न होना है. कभी रसना-इन्द्रिय से उत्पन्न होता है, कभी घाण से, कभी नेत्र से और कभी न स होता है तो कभी मन से भी होता है। इसी प्रकार ईहा, अवाय और धारणा भी सभी इन्द्रियों और मन से उत्पन्न होते हैं। अतएव इन चारो के कुल Sx४-२४ भेद होते है।
यह चोचीसो प्रकार का मतिज्ञान. प्रत्येक बारह प्रकार के पढाथो को जानता है । जैस-बहु. बहुविध, क्षिप्र, आनसत, अनुत्त. चव, एक, एकविध अनिय, निसत, उक्त और भय । इन बारह पदायों के कारण प्रत्येक मतिनान के बारह बारह भेद हो जाते हैं और चौबीमा के मिनाकर ४४२ भेद होते