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पार्श्वनाथ नही रहता । इत्यादि कारणो से भगवान ने कैवल्य-प्राप्ति के पूर्व धर्मदशना नहीं दी थी।
शका-यदि केवलज्ञान प्राप्त होने से पहले धर्मोपदेश देना उचित नहीं है, तो सामान्य मुनि धर्मोपदेश क्यो देते है ?
समाधान-सामान्य मुनि मौलिक तत्व की स्थापना नहीं करते । वे तो अर्हन्त भगवान द्वारा उपदिष्ट तत्त्व का ही अनुवाद करते है। सामान्य मुनियो का आगमानुकूल उपदेश अर्हन्त भगवान की दिव्यध्वनि की एक प्रकार की प्रतिध्वनि है। अतः मुनि द्वारा किया जाने वाला आगमानुकूल उपदेश उचित ही है । उस उपदेश में स्वतः नहीं किन्तु आगमाश्रित या अर्हन्त भगवान के उपदेश पर आश्रित प्रामाण्य है।
धर्म-देशना केवल नान प्राप्त होने पर आज पहली बार भगवान् पार्श्वनाथ की धर्म-देशना प्रारम्भ हुई । भगवान ने इस आशय का आदेश दिया.
भव्य जी! अन्तष्टि प्राप्त करो। अन्तष्टि प्राप्त किये दिना पदार्थ का वास्तवित स्वरूप ज्ञान नहीं होता। आत्मा ग्वभाव से मिद्ध, बह, और अनन्न गुणों से समृद्ध होने पर भी क्यों नाना योनियों में भ्रमण वर विविध बदनामों का पात्र ननरहा है. इसका कारण अज्ञान है। जीव ने अनान के वश होकर अपनी शक्तियों को विस्मन कर दिया है। वह बहिरात्मा बन गया है। नमार दे भोगोपभोगों ने मुख की रचना करता है। इन्द्रियों ना मामा पटाच्यत हारर इन्द्रियों का दास हो
। म ने गामा की माम अनन्त शक्तियों को