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उपसर्ग
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पाश्वनाथ पर उपसर्गो की घनघोर घटा घहरा रही है। यह ज्ञात होते ही वह पद्मावती के साथ स्वर्ग से रवाना हुआ और भागा-भागा प्रभु के पास पहुंचा। उसने तत्काल ही भगवान के पैरों तले एक सुन्दर कमल बनाया और ऊपर सर्प के फनों जैसा छत्र बना दिया। इस प्रकार भगवान् जल के उपसर्ग से मुक्त होगये। फिर भी भगवान् मौनावलम्बन किये वीतराग भाव मे तल्लीन रहे । न तो मेघमाली के कर्तव्य पर उन्हें रोष हुआ और न धरणेन्द्र के कर्तव्य पर तोष ही हुआ। वे अपने समभाव की आराधना मे ही निमग्न रहे । पर कोई भी सच्चा भक्त अपने भगवान् के प्रति किये जाने वाले दुर्व्यवहार को देख-सुनकर शान्त नही रह सकता। धरणेन्द्र से भी न रहा गया। उसने मेघमाली को बुरी तरह फटकारा । मेघमालो देव पहले ही अपनी घोर पराजय से लज्जित हो रहा था। ऊपर से धरणेन्द्र की डाट पड़ी तो बुरी तरह सकपकाग। धरणेन्द्र ने कहा"दुरात्मन | तुझे मालूम है यह महापुरुष कौन है ? तू अपनी दुष्टता प्रदर्शित करके उन्हे अपने पथ से डिगाना चाहता है ! खद्योत क्या कभी दिवाकर की प्रचंड किरणों को पराजित करने में समर्थ हो सकता है ? आध्यात्मिक शक्ति विश्व में सर्वोत्कष्ट और अजेय है। उसके सामने कभी कोई न टिक सका हे और न टिक सकेगा। तने अपनी पाशविक शक्तियो का प्रदर्शन करके पापोपार्जन के अतिरिक्त और क्या फल पाया ? भगवान् को पथभ्रष्ट करने का तेरा प्रयास वैसा ही है जैसे कोई अपने मस्तक की चोटों से सुरगिरि को भेद डालने का प्रयास करे, बौना पर्वत को लांघ जाने की हास्यास्पद चेष्टा करे और टोटालंगड़ा समुद्र को भुजाओ से पार करने का मनोरथ करे।