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उपसर्ग
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बडे-बड़े जंगली बिच्छ्रओ के अनेक रूप बनाये । सबने मिल कर एक साथ प्रभु पर आक्रमण किया। देव ने समझा-अबकी बार पार्श्वनाथ अवश्य भयभीत हो जाएंगे और घोर वेदना का अनुभव करेगे । पर करोड़ों देवो की शक्ति से भी अधिक शक्ति के धारक भगवान के लिए देव द्वारा दिये जाने वाले कष्ट बालक का खिलवाड़ था। उनके ऊपर देवता के किसी भी आक्रमण का प्रभाव नही हुआ। वे यथापूर्व अवस्थित रहे। उनके चेहरे पर वही अपूर्व शान्ति और सौम्यता क्रीडा कर रही थी। उनकी ध्यान-मुद्रा जैसी की तैसी थी।
धरणेन्द्र जैसे इन्द्र और देवगण भगवान के क्रीत दास थे। वे सदा भगवान के इशारे पर नाचने को उद्यत रहते थे। भगवान् यदि इच्छा करते तो तत्काल ही इन्द्र उनकी सहायता के लिए दौड़ा आता। पर नही, तीर्थकर दूसरों के पुरुपार्थ का
श्रय नहीं लेते। वे आदर्श महापुरुप है। मर्यादा पुरुषोत्तम है। वे अपनी आध्यात्मिक शक्ति द्वारा ही विजय प्राप्त करते है। वे अपने लोकोत्तर पुरुपार्थ द्वारा ही इतर प्राणियों के समक्ष महान आदर्श उपस्थित करते है। आत्मिक विजय दूसरे की सहायता से मिलती भी नहीं है।
सर्प और बिच्छू रह-रह कर बार-बार अपनी तीखी दाढ़ी से तथा डंको से भगवान् पर प्रहार करने लगे। उन्होने अपनी समझ मे कुछ भी कसर न उठा रखी । पर उन्हे जान पड़ा जैसे हम चट्टान से टकरा रहे है। हमारे प्रयास सर्वथा व्यर्थ जा रहे है। इस प्रकार भगवान् की निश्चलता देखकर देव भी चकित - रह गया। उसने ऐसे वञ-हदय पुरुप की कल्पना भी न वह सोचने लगा आखिर यह म्या रहा