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चौथा जन्म
राजा और प्रजा का संबंध पिता-पुत्र के समान होता है। राजा केवल ऐश्वर्य भोग या प्रजा पर शासन करने के लिए नही है किन्तु वह प्रजा का पिता है, पहरेदार है, सेवक है और सब कुछ है। राजा के हाथ में न्याय की तुला होती है । न्याय की मर्यादा की रक्षा करना राजा का कर्तव्य है । जैसे परिवार का मुखिया अपने परिवार में किसी को दुखी नही देख सकता उसी प्रकार आदर्श राजा अपने राज्य-परिवार में प्रजा को दु:खी देखकर निश्चिन्त नहीं रह सकता । प्रजा, राजा के लिये नही वरन् राजा प्रजा के लिए होता है। प्रजा के कल्याण के लिए राजा को अपना सर्वस्व बलिदान करना पड़े तो वह भी अपना कर्तव्य समझ कर प्रसन्नता से करना चाहिए। ___ वत्स ! अपने शत्रुओं के साथ भी न्यायपूर्ण व्यवहार करना। न्याय-नीति के लिए शस्त्र ग्रहण करने की आवश्यकता होने पर कायरता दिखलाना जैसे राजा के लिए कलंक की बात है उसी प्रकार निहत्थों पर शस्त्र उठाना,अधर्म युद्ध करना, छल से किसी की हत्या करना भी राजा के लिए कलंक है। अपने देश की रक्षा करने के लिए सदैव कटिबद्ध रहना । मातृभूमि का अपमान सहन करने से पहले मर मिटना अपना कर्तव्य समझना । सदाचारी सत्पुरुषों की सँगति करना। सातों कुव्यसनों से सदैव अपनी रक्षा करना । अपनी विवाहिता स्त्री के अतिरिक्त अन्य स्त्रियों मे जो बड़ी हों उन्हें माताके समान, जो बराबर हों उन्हें भगिनी के समान, और जो कम आय की हो उन्हें पुत्री के समान समझना । मेरी इन अन्तिम वातों को सदा स्मरण रखोगे और इनका पालन करोगे तो वेटा ! तुम यशस्वी और तेजस्वी शासक बनोगे और अपने कुटम्ब की परम्परागत निर्मल कीर्ति और मर्यादा को अक्षरण