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बारह भावना
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का संचय करते है, उस शरीर का वास्तविक स्वरूप कितना घिनौना है । देह के समान गंदगी का गेह समस्त संसार मे और कुछ नही है । ऊपर से मढ़ी हुई चमड़ी की चादर उतार कर शरीर का भीतरी भाग देखा जाय तो कितनी वृणास्पद वस्तुएँ दिखाई पड़ेगी ? पवित्रता- पवित्रता का राग अलापने वाला क्रियाकांडी कभी यह सोचता है कि वह अपने साथ अशुचि का भडार भरे फिरता है ?
शरीर प्रथम तो घृणाजनक रज-वीर्य के सयोग से उत्पन्न होता है । उत्पन्न होने पर वह मल-मूत्र, रक्त, मास पीव आदि शुद्ध वस्तुओ से सदैव घिरा रहता है । यह हाड़ो का पिंजरा है और नसो से बधा हुआ है । इस शरीर मे कौन-सी वस्तु प्रशंसनीय है ? लट और कीड़ो से भरा हुआ यह शरीर किस विवेकशाली को प्रीतिकर हो सकता है ?
शरीर इतना अधिक मलिन है कि इसके ससर्ग से आने वाली प्रत्येक वस्तु मलिन और घृणास्पद बन जाती है । उत्तम से उत्तन, सरस, स्वादु और मनोज्ञ भोजन करो | वह ज्योही शरीर के भीतर पहुॅचा नही कि विकृत हुआ नही । शरीर के ससर्ग से वह सुन्दर भोजन मल मूत्र रक्त-मांस आदि बन जाता है ।
कदाचित् समुद्र का सारा जन लेकर यदि शरीर शुद्ध किया जाय तो समुद्र जल ही अशुद्ध हो जायगा । शरीर शुद्ध होने का नही । शरीरो से भी मानव शरीर और अधिक गंदा है। जानवरो का गोवर राम आता है, चमड़ी और सीग आदि भी काम आ जाते है पर मनुष्य के शरीर का प्रत्येक भाग अशुद्ध होने के कारण अनुपयोगी है। इसके नौ द्वारो से सदा शुचि निकलनी रहती है | पर भी प्राणी शरीर पर ऐसा राग रखते
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