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छठा जन्म
मादक द्रव्यों का सेवन करते है, जो न तपस्वी हैं, न ज्ञानी ऐसे भी और अन्यायी गुरुओ से साधारण गृहस्थ ही श्रेष्ठ है । ऐसे गुरुओ को मानना गुरुवृढ़ता है । और वह मिथ्यात्व का कारण है ।
सम्यक्त्व की श्रद्धा के विषय मे तीर्थकर भगवान् ने कहा
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है
परमत्थ संथओ, मुट्ठि परमत्थ सेवणा वाविवावन्न कुदंसणवज्जणा य सम्मत्तसद्दहरणा ॥
अर्थात् सम्यक्त्व का श्रद्धान इस प्रकार होता है, कि कुदेव, कुगुरु और कुधम की कभी प्रशंमा न की जाय । क्योकि प्रशंसा करने से अन्य भोले लोग उन्हें आदर्श मान कर उनके चक्कर मे पड़ जाएँगे और अपनी वृत्ति मे भी चंचलता उत्पन्न होगी । इस लिए उनकी प्रशंसा नही करनी चाहिए। जो देव सच्चे है, जिन का अनुसरण करने वाले गुरु सच्चे है और जिनके द्वारा प्रणीत दयामय धर्म सच्चा है, उनकी सच्चे हृदय से प्रशंसा और स्तुति करनी चाहिए, क्योंकि वे परमार्थ के स्वरूप को सम्यक् प्रकार से जानते है | उन्हीं का शरण ग्रहण करना चाहिए । उन्ही की भक्ति करना चाहिए | वही आत्मकल्याण के कारण हैं ।
किसी भी पदार्थ का पूर्ण और सर्वाङ्गीण विवेचन करने की पद्धति यह है, कि उसके अंगो पर विवेचन किया जाय । अंगो के समूह को अगी कहते है | जब तक अगो का ज्ञान न हो तब तक अंगी की कल्पना करना कठिन है । यदि हम किसी के शरीर का समग्र वर्णन करना चाहे तो हमे अनिवार्य रूप से उस के अंगोपांगो की ओर दृष्टि डालकर उनका वर्णन करना होगा । अंगो