________________
- पाश्वनाथ
का वर्णन ही एक प्रकार से अंगी का वर्णन है । क्योंकि अंग और अंगी मे कथंचित तादात्म्य संबंध होता है । इस प्रकार । सम्यग्दर्शन का वास्तविक स्वरूप समझने के लिए उसके अंगोगा स्वरूप समझना अनिवार्य है । सम्यक्त्व के आठ अंग माने गये है। वह आठ अंग ही सम्यग्दर्शन है । अतः उनका संक्षिप्त स्वरूप जानना आवश्यक है । आठ अंग इस प्रकार हैनिस्संकियं निकंखियं निश्चितिगच्छा अमृढ दिट्ठी य । उबबूह-थिरीकरणे, वच्छल्ल पभावणे अट्ट ।
अर्थात् निश्शंकित, निःकांक्षित, निविचिकित्सा, अमूढ दृष्टि, उपगहन, स्थितिकरण, वात्सल्य और प्रभावना, यह आठ सम्यक्त्व के अंग या गण है। ___ जिन भगवान द्वारा प्ररूपित तत्त्व ही वास्तविक तत्त्व है।
और उनका स्वरूप भी वही है, जो भगवान ने बताया है । इस प्रकार की निश्चल श्रद्धा को नि.शंकित अंग कहते है । श्रहा या विश्वास की अनिवार्य आवश्यकता पद-पद पर अनभव की जा सकती है। क्या भौतिक जगत् मे और क्या आध्यात्मिक जगत् मे श्रद्धा के विना पल भर भी काम नहीं चलता । जब वद्धि मे एक प्रकार की चंचलता का प्रवेश होता है, तब मनुष्य ऐसी परिस्थिति मे आ जाता है, कि उसके संकल्प-जो जीवन मे वहुमूल्य है, नण भर मे नष्ट होने लगते है। वह अपने निश्चित पथ से भ्रष्ट होकर, विवेक की बागडोर को एक किनारे रखकर इधरउधर निम्हेश्य-सा भटकने लगता है। उस समय उसे अपने लक्ष्य की और छाकृष्ट करने का कार्य श्रद्वा ही करती है । पर्ण श्रद्वा के चिना, न्द मल्प के अभाव मे किसी भी कार्य की सिद्धि नहीं