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अपूर्व विजय
सेनापति के विगल बजाते ही दम-भर मे सेना सजित हो गई। कुमार पार्श्व को जब पता चला तो वे महाराज के पास आये
और वोले-'पिताजी ! आज क्या बात है ? किसके दुर्भाग्य का उदय हुआ है जिसके लिए आपने सेना तैयार कराई है ?' महाराज अश्वसेन ने कहा-'वत्स! कुशस्थल पर कलिंग के राजा ने अन्यायपूर्ण आक्रमण किया है । कुशस्थल नरेश अपनी सहायता चाहते हैं । न्याय पक्ष की सहायता करना क्षत्रिय का धर्म है। ऐसा न किया जायगा तो संसार मे घोर अव्यवस्था और अन्याय का साम्राज्य हो जायगा । अतएव कलिंगराज को न्याय का पाठ पढाने के लिए यह तैयारी की गई है। और शीघ्र ही मै कुशस्थल की ओर प्रयाण करता हूँ।
कुमार ने कहा-'तात ! यदि आप मुझे इस योग्य समझते हो, तो अव की वार मुझे ही संग्राम मे जाने की आज्ञा प्रदान कीजिए । मै आप जैसे असाधारण योद्धा का पुत्र हूँ और न्याय का बल अपने पक्ष मे है इसलिए शत्रु का पराजित होना निश्चित समझिये । यद्यपि मेरी उम्र अधिक नहीं है तो भी क्या हुआ। वाल सूर्य. सघन अन्धकार का विनाश कर देता है और सिंहशावक शगालों का संहार कर डालता है। मै भी कलिंगराज के होश ठिकाने ला दूंगा। ___ महाराज अश्वसेन कुमार की वीरता को समझते थे। कुमार की वीरोचित वाणी सुनकर उन्हें हार्दिक सन्तोष और प्रमोद हुआ । प्रसन्नता के साथ उन्होने युद्ध मे जाने की स्वीकृति दे दी। पार्यकुमार सेना सहित कुशस्थल की तरफ रवाना हुए। मार्ग मे इन्द्र के द्वारा भेजा हुआ रथ लेकर एक सारथि आया। बोला'कुमार ! आपकी सेवा मे महाराज इन्द्र ने यह रथ भेंट स्वरूप