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पार्श्वनाथ भेजा है । अनुग्रह करके इसे स्वीकार कीजिए।' कुमार ने इन्द्र की भेंट स्वीकार की और उसी विशाल एवं द्रुतगामी रथ पर सवार होकर चल दिये । रणभेरी से प्रकाश को शब्दमय बनाती हुई सेना रणस्थल कुशस्थल जा पहुंची। उचित स्थान देखकर बनारस की सेना पडाव डाल कर ठहर गई।
भारतवर्ष म अत्यन्त प्राचीनकाल से एक प्रथा चली आती है। आक्रमण करने से पहले प्रत्येक राजा अपने विरोधी के पास दृत भेजकर उससे अपनी मांगे स्वीकार कराने का सन्देश भेजता है। यह प्रथा वीरे-धीरे अनार्य राजाओं तक फैलकर प्रायः सर्वव्यापक मी हो गई है । इस प्रथा के अन्तरंग मे जैन धर्म का अहिंसा विषयक एक नियम विद्यमान है। श्रावक निरपराध त्रस प्राणी की हिंसा का त्याग करता है। वह केवल 'मापराधी' का अपवाद रग्यता है । यदि दून द्वारा अपनी मांग स्वीकार करने की सूचना न दी जाय तो कदाचित निरपराध की हिंसा हो सकती है । मम्भव है विरोधी वह मांग स्वीकार करने के लिए उद्यत हो गया हो फिर भी उसका अभिप्राय जाने बिना आक्रमण कर दिया जाय तो ऐसे युद्ध मे होने वाली हिंसा निरपराध की हिंसा कहलाएगी और वह श्रावक धर्म से विरुद्ध है । इसी कारण दूत को भेजकर अपने विरोवो का अभिप्राय जान लेने की परिपाटी चली है। तदनुसार पावकुमार ने भी चतुर्मुख नामक दूत कलिगराज के पास भेजकर अपना अभिप्राय कह भेजा। कुमार ने पहलाया-"कलिंगराज' संमार में राजाओ की व्यवस्था न्याय की रना के लिए की गई है। राजा न्याय का प्रतिनिधि है। वह न्वर यदि अन्याय पर उतारू हो जायगा तो न्याय का रनक सन रहेगा मेटहीन को उजाड़ने लगे तो खेत की रजा