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पार्श्वनाथ
कलिंग नरेश से कहा-"अन्नदाता | कुमार के सन्देश पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए। उसमे नीति का तत्व कूटकूट कर भरा है । सन्देश का अनर-अनर राजा के कर्तव्य की महत्ता प्रदर्शित कर रहा है । इसके अतिरिक्त कुमार स्वयं अत्यन्त वली हैं। इन्द्र उनका सेवक है । उनके साथ विग्रह करके सफलता की आशा नहीं की जा सकती अतएव सन्धि करने का यह स्वर्ण अवसर है।
भत्री की वात राजा के गले उतर गई । उसने दूत से कहा"दूत । जाकर कुमार से कह दो कि आपका मंदेश पहुंच गया है मैं स्वयं उनके पास आकर वार्तालाप करना चाहता हूँ।" __ कलिंगराज अपने मंत्री के साथ कुमार की सेवा मे पहुँचे । कुमार ने उनका यथायोग्य आदर-सत्कार किया। बैठने को योग्य श्रासन दिया। कलिंगराज ने कहा-'कुमार | आपके संदेश ने मेरे जीवन को एक नई दिशा मे अभिमुख कर दिया है । उसका मेरे अन्तःकरण पर गहरा प्रभाव पड़ा है। मेरी आज आंखे
आपका संदेश यद्यपि संनिप्त था पर उसमे राजनीति
सिद्धान्तों का सत्व खीच कर आपने भर दिया है । आपके आदेशानुसार मैंने अपना संकल्प बदल दिया है । मैं शीघ्र ही सेना समेत कलिंग की ओर प्रयाण करता हूं।
कुमार-'आपके शुभ निश्चय के लिए धन्यवाद है। कलिंगराज! आपने मेरा निवेदन स्वीकार करके सहस्रो वीरों के प्राणों की रक्षा करनी । अन्यथा न जाने कितनी सुहागिनो के सुहाग छिन जाते, न जाने कितनी विधवाओं के एकलौते लाल लुट जाते और संसार मे अन्याय को प्रोत्साहन मिलता।
कलिंगराज-मगर कुशस्थल पर चढाई करने से मेरी