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पार्श्वनाथ
है | सच है - किये हुए कर्मों से भोगे बिना छुटकारा नहीं मिल सकता । जिसने जैसे कर्मों का उपार्जन किया है वह वैसे ही फल भी पाता है । जैसे नीम बोने पर आम नहीं मिलते उसी प्रकार पाप कर्म करके सुख नहीं प्राप्त किया जा सक्ता । अतः जो सुख की अभिलाषा रखते हैं और दुःख से दूर रहना चाहते हैं उन्हें अपने कर्त्तव्यों की ओर ध्यान देना चाहिए तथा पापजनक कार्यों का परित्याग कर पुण्य जनक कार्यों को अपनाना चाहिए । यदि तुम सुख चाहते हो तो दूसरों को सुख उपजाओ । सुखी बनने का यही सर्वश्रेष्ठ उपाय है । कुर्कट सर्प ने न जाने कितने प्राणियों के प्राण हरण किये, न जाने कितनों को त्रास दिया और भयभीत किया । उसका फल उसे भोगना पड़ा । वह छठे नरक मे नारकी रूप से उत्पन्न हुआ। वहाँ उसे भूख-प्यास की, क्षेत्रजन्य और नारकी जन्य घोर से घोर वेदनाऍ सहन करनी पड़ती हैं । दूसरी ओर मरुभूति के जीव को देखिये । वह क्रमश: अधिकाधिक सुखों का भोक्ता बनता जा रहा है, क्योंकि उसकी धर्मारावना भी क्रमशः बढ़ती जाती है ।
छठा जन्म
मरुभूति का जीव वाईस सागर की आयु समाप्त कर स्वर्ग से घ्युत हुआ और विश्वपुर के राजा वीर्य की रानी की कुक्षि मे अवनरित हुआ। रानी ने शुभ स्वप्न देखे । नव महीने और साढ़े नाव दिन के पश्चात राजकुमार का जन्म हुआ। राजा और परिबाद की प्रसन्नता का पारावार न रहा । पुत्र जन्म के हर्ष के उपलक्ष्य में अनेक लोकोपकारी संस्थाओं का उद्घाटन किया