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चौथा जन्म
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और औषधियों की क्या कमी ? बड़े-बड़े वैद्य आये । मूल्यवान् औषधियां की गईं पर कोई भी कारगर न हुई । एक बार एक आयुर्वेद-विशारद प्रसिद्ध वैद्य ने ध्यानपूर्वक राजा की नाड़ी देखी तब कुछ सोचकर वह बोला- 'महाराज ! कुछ दिनों तक मै आपको औषधि दूँगा | आप उसका यथाविधि सेवन कीजिए । राजा ने वैसा ही किया। थोड़े ही दिनों बाद वह स्वस्थ हो गया । वैद्य ने कहा - 'महाराज, अब यह रोग आपको कभी न होगा । मगर एक पथ्य आप सदा पालन कीजिए-आम कभी न खाइए' राजा बोला - राज, श्रम खाने की तो बात ही क्या है, मैं कभी आम की छाया तक मे न बैठूंगा ।' फाल्गुन महीने की यह बात थी । साढ़े तीन महीने बीत गये ।
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एक बार राजा अपने मंत्री के साथ घूमने घामने के लिये निकला । धूप कडी पड़ रही थी । आसमान से सूर्य आग बरसा रहा था और नीचे जमीन तवे की तरह तप रही थी । राजा ने मंत्री से कहा—'मंत्री जी | धूप और गर्मी के मारे प्राण निकले जा रहे हैं । आसपास किसी सघन वृक्ष की शीतल छाया मे चल कर विश्राम करे ।' मंत्री ने दूर तक दृष्टि दौड़ाई पर एक आम्र वृक्ष के अतिरिक्त और कोई वक्ष दिखाई न दिया । मंत्री ने कहा-'महाराज, आसपास मे तो विश्राम करने योग्य कोई वृक्ष नज़र नही आता ।'
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राजा -- क्या गर्मी के कारण तुम्हारी आंखें जवाब दे गई ? देखो, वह क्या एक सघन वृक्ष दिखलाई दे रहा है ?
मंत्री - जी नही, वह तो मैने भी देखा है पर वह विश्रम करने योग्य नहीं है । वह आम का वक्ष है, आप उसके नीचे तो बैठेंगे नही ।
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