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पार्श्वनाथ
सामर्थ्य का उदय हुआ उसने चार घनघातिया कर्मों को चकचूर कर दिया । उन्हें सर्वज्ञता और सर्वदर्शिता प्राप्त हुई । समस्त लोकालोक उनके ज्ञान में हस्तामलक से भी अधिक सुस्पष्ट रूप से आलोकित होने लगा। अन्त मे चार अघातिक कर्मों का भी तय करके महात्मा अरविन्द मुक्तिधाम मे जा विराजे ।
. इधर मरुभूति का जीव हाथी ढो- दो-चार-चार दिनों तक कुछ भी न खाता था । जब कभी खाता भी तो वृक्षों की सूखी पत्तियों से संतोष कर लेता था । ऐसा करने से हाथी का शरीर दुर्बल हो गया ।
अत्र कमठ की ओर ध्यान दीजिये । वह तापस रूप मे अपने दिन विल रहा था । जब उसने अपने सहोदर मरुभूति के प्राण ले लिये और उसके गुरु को उसकी इस भीषण पापमय करतूत का पता चला तो उसने कमठ को अयोग्य और नृशंस समझकर अपने आश्रम मे आश्रय देना उचित न समझा । उसे तत्काल निकाल बाहर कर दिया। इस घटना से आग से और घी पड़ गया। अब उसके क्रोध का रूप अधिक प्रचड होगया । वह अपना पापमय समय व्यतीत करता हुआ आयु के अंत होने पर विन्ध्याचल के पहाड़ मे कुर्कट जाति का सर्प हुआ । क्रोध के प्रभाव से वह सर्प इतना विषैला हुआ कि लोग उसके भय के मारे धर्रा उठे । पथिकों का उसके निवास स्थान की योग् श्रावागमन बंद होगया। यहां तक कि पशु भी उस ओर जाने का साहस न करते थे । तीव्र विप धारक उस सर्प की विकारों से समस्त जंगल ऐसा रुण्ड-मुण्ड हो गया मानों दावानच ने मारे जंगल को भस्म कर डाला हो । भावी प्रबल होती है। होनहार टलती नहीं । संयोगवश मरुभूति का जीव