Book Title: Parshvanath
Author(s): Chauthmal Maharaj
Publisher: Gangadevi Jain Delhi

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Page 16
________________ पार्श्वनाथ दिया गया तो उसने सहर्ष अपनी आंखे निकाल कर सज्जन को दे दी। कर हृदय सज्जन कुमार को नेत्रविहीन कर चलता बना। कुंमार को जंगल मे बैठे-बैठे शाम हो गई। पुण्य जिसका सहायक होता है उसका कहीं अनिष्ट नहीं हो सकता। शाम होने पर हँसों का एक मंड वहाँ वट-बक्ष पर वास करने आया। उनमे से एक हॅस ने कहा-देखो जी, हम लोग चुगते तो मोती हैं। पर बदले मे कुछ भी नहीं देते । दूसरे ने कहा-बाह ! देते क्यों नहीं ? इस वट वृक्ष पर जो लता लगी है, इसके पत्तों का रस कोई हमारी वीट मे मिलाकर लगाए तो नेत्र-हीन भी सनेत्र हो जाता है । जन्मांध भी इससे दिव्य ज्योति प्राप्त करता है। कुमार यह संवाद सुन बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने उल्लिखित उपचार कर पुन: दिव्य ज्योति प्राप्त की और आगे चल दिया । चलते-चलते वह चम्पानगरी मे पहुँचा । चम्पा के राजा जितशत्र की कन्या नेत्रहीन थी । राजा ने घर की बहुत तलाश की, पर कोई अंधी राजकुमारी से विवाह करने को तैयार न हुआ। राजपरिवार इस घोर चिन्ता के मारे प्रात:काल होते ही जीवित जल मरने को तैयार हो रहा था। सारी नगरी में कुहराम मचा हुआ था। ऐसे समय ललितांगकुमार चम्पा में पहुंचा। पुण्यवान् पुरुप जहा जाते हैं, अपने पुण्यके प्रताप से वहीं शान्ति का प्रसार करते है। कुमार ने राजकुमारी की चिकित्सा की। उसे दृष्टि प्राप्त हो गई। राजा ने प्रसन्न होकर कन्या का पाणिग्रहण भी कुमार के साथ कर दिया और बाधा राज्य भी दे दिया । अब राजकुमारी के साथ ललितांगकुमार आनंद पूर्वक रहने लगे। उधर सज्जन की करतूते फलने-फूलने लगीं। वह दरिद्र हो गया । भीख मांग कर किसी प्रकार अपना निर्वाह करता था। Au

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