Book Title: Parmatma ka Abhishek Ek Vigyan Author(s): Jineshratnasagar Publisher: Adinath PrakashanPage 21
________________ जन्मन्यनन्त सुखदे भुवनेश्वरस्य, सुत्रामभिः कनकशैल-शिरः शिलायाम् । स्नात्र व्यधायि विविधाम्बुधि-कूप-वापी-कासार-पल्वल-सरित-सलिलैःसुगन्धैः तां बुध्धिमाधाय हृदीह काले, स्नात्रं जिनेन्द्रप्रतिमागणस्य। कुर्वन्ति लोकाः शुध्धभावभाजो, महाजनो येन गतः स पन्थाः। वापी-कुप-हृदा-म्बुधि-तडाग-पल्वल-नदी-निर्झरादिभ्यः। आनीतै-दिविमलजलै स्तानधिकं पूरयन्ति च ते। पानी के प्रकार : नादेय-औद्रिद-नैर्झर-ताडाग-वाप्य-कोप-चोणिट्य-पाल्वल -विकिर-कैदार-इत्यादि गंगा, सिन्धु, नर्मदा आदि नदियों के पानी नादेय जल कहलाते हैं। अन्दरुनी जमीन फाड़कर बहते पानी को ओंद्रमिंद जल कहते हैं। पर्वत जैसे ऊँचे प्रदेश से गिरते हुए जल को निर्झर जल कहते हैं। पहाड़ों में रुककर बने हुए बड़े जलाशयों को सरोवर कहते हैं। इसे सारस जल भी कहते हैं। जमीन पर मानव सृनित या कुदरती बने हुए जलाशयों को तडाग कहते हैं। भूमि में अल्प विस्तार वाला गहरा मंडलाकृति वाले कूप के पानी को कोप कहते जिस कूप में पगथी रहती है उसे वाव कहते हैं, उसके पानी को वाप्य जल कहते हैं। जो कूप कुदरती बना हुआ एवं लताओं से आवृत हो उसे चुण्टि कहते हैं। उसके जल को चोणट्य कहते हैं। छोटे तालाबों को पल्लव कहते हैं, उनके जल को पाल्लव कहते हैं। नदी के रेत वाले पट में खुदाई कर जो जल प्राप्त होता है उसे विकिर जल कहते हैं। खेतों में क्यारियों में जो जल संचित है उसे केदार जल कहते हैं। इस तरह स्थान विशेष से पानी के नाम और गुणों में अन्तर पड़ता हैं।Page Navigation
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