Book Title: Parmatma ka Abhishek Ek Vigyan Author(s): Jineshratnasagar Publisher: Adinath PrakashanPage 31
________________ 4 अभिषेक व्यन्तर की चार अग्रमहिषी के 4 अभिषेक ज्योतिषी के चार अग्रमहिषी के 4 अभिषेक चार लोकपाल के 1 अभिषेक अंगरक्षक देव के 1 अभिषेक सामानिक देव का 1 अभिषेक कटकाधिष देव का 1 अभिषेक त्रायत्रिंशक देव का 1 अभिषेक प्रजास्थानीय देव का 1 आखरी अभिषेक परचुरन देवों का इस प्रकार 250 अभिषेक हुए। श्रीमत् पुण्यं पवित्रं कृतविपुलफलं मंगलं लक्ष्म लक्ष्मयाः, क्षुण्णारिष्टोपसर्ग-ग्रहगति-विकृति-स्वप्नमुत्पात-घाति। संकेलः कौतुकानां सकलसुख-मुखं पर्व सर्वोत्सवानाम्, स्नात्रं पात्रं गुणानां गुरुगरिमगुरोर्वञ्चिता यैर्न दष्टम्। भावार्थ : श्रेष्ठ गुरु गौरव-पूजा-सत्कार प्राप्त करनारे, चक्रवर्ती, इन्द्र, गणधर इत्यादि के भी गुरु महान से महान अर्हत् जिनेश्वर परमात्मा का गुण पात्र स्नात्र, कि जो श्रीमत है, पुण्य के हेतु रूप है, पवित्र पावनकारी है, विपुल फलदायक है, मंगलरूप है, इष्ट अर्थ का संपादक है, लक्ष्मी का चिन्ह है, अरिष्ट-अशुभ, उपसर्ग, ग्रहों की गति से उत्पन्न विकृतियों, शारीरिक पीड़ा, विकृत अशुभ स्वप्नों का नाशक, अनिष्ट सुचक उत्पात-ग्रहोपराग, धरती-पन इत्यादि को रोकने वाले, कौतुकों के संकेत रूप हैं। सकल सुखों के मुखरूप-उपायरूप हैं। सर्व उत्सवों के पर्वरूप-उत्सवरूप हैं तथा सर्व उत्सव में प्रधान-श्रेष्ठ है। वह स्नात्र जिन्होंने देखा नहीं, वंचित रहे वह आँखे प्राप्त होते हुए उसका सद्उपयोग नहीं कर सके, फल-लाभ प्राप्त नहीं कर सके। रूपं वयः परिकरः प्रभुता पटुत्वं पान्डित्यमित्यतिशयश्च कला-कलापे। तज्जन्म ते च विभवा भवमर्हनस्य स्नात्रे व्रजन्ति विनियोगमिहार्हतो ये।Page Navigation
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