Book Title: Parmatma ka Abhishek Ek Vigyan
Author(s): Jineshratnasagar
Publisher: Adinath Prakashan

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Page 67
________________ मो संनेहि विडंबीयो, जुणां पाणी देय। हुं तुम सलुणां विनवू, वातह एक सुणीज, द्याठा चांठा माणसा, तस सिर रोस गलीज। मंत्र गुप्त ए विनति, दीधी जन तव पास, बोधि बीज भव भव दीयो, सेवक कुं करो तास। ---------- पासह समरण जो करइ संतुट्ट हीयएण, अठुतर सवाहि भय, तसु नासेइ दूरेण। पासु चिंतामणि जे जपइ,नीय मणकमल मझारी, तिह नइ मंगलि नादि सिउं, आवइ नव निधि वारि। पास जिनेसर पणवमय, संकटि चिंतवइ जेय, रिध्धि बुध्धि सण, पमइ पामइ मंगल तेय। माया अक्खरि पासु जिण, जो जाइहिं निय चित्त, सुरनर किन्नरि हरिस वसि, ते नर थुणीइ जत्ति। पासु महासिरि मनि वसइ जीह नर तणइ तिकाल, तीह नर देखी उल्लसइ, महि मंडलि भूपाल। अहँ नमः श्री पास जिण, जे समरइ वरि भावि, ते नर वरीयइ तित्थयर, केवल कमला आवि। नमि उणय पासह अविचल गजपति जो सुविसाल, पास पसाइ जक्ख हुअ कलिकुंडि जि रखवाल। जस पयकमलि सया वसइ पउमि पासु वइरूट्ट, तसु नामिहिं तुट्टइ सयलु विसहर विसनां घट्ठ। वामा नंदन वसह जिण जे नित नमइ फूलिंग, भव माया ते नवि पडइ पामिय जिणवर जिंग। नाग सहस्सा दस वसइ भतीइ जेहनइ नामि, निम्मल सण सो दीयउ पास जिणेसर स्वामि। लंछण निसि सेवा करइए जसु पाए धरणिंदु, (50)

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