Book Title: Parmatma ka Abhishek Ek Vigyan
Author(s): Jineshratnasagar
Publisher: Adinath Prakashan

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Page 74
________________ आँ कों हीं सर्ववश्यं, कुरू कुरू सरसं कार्यणं तिष्ट तिष्ट; यूँ हूँ हूँ रक्ष रक्ष, प्रबलतरमहा भैरवारातिभीमैः; हाँ ही हूँ द्रावयेति, द्रव हन हन फट् फट् वषट् बन्ध अन्ध; स्वाहा मन्त्रं पठन्तं, त्रिजगदधिपते संस्तुवे पार्श्वनाथम्। हं सं इवीं क्ष्वी सहंसः, कुवलय कलितै रचितांग प्रसूनैः; इवी भः हः घर्भ हंसं, हर हर हहहं पक्षिपः पाक्षिकोपम्; पँ वँ हँस पर्वम सर सर, सर सत् सत्सुधा बीज मन्त्रैः; स्नाय स्थाने परत्नैः, प्रबलति विमुखं संस्तुवे पार्श्वनाथम् । क्ष्माँ माँ यूँ क्ष्मी क्षः, रेतै रहपति विनुतं रत्नदीपैः प्रदीपैः; हा हा कारोग्रदादैर्चल-द्हन शिखा कल्प दी|ध्वकेशैः; पिंगाक्षैलॊलि जिवे, विषम विषधरा लङकृते स्तीक्ष्ण दंष्टै; भूतेः प्रेतैः पिशाचै, रनघ कृत महोपद्रवाद् रक्षितारम् । झाँ झीँ झ्ः श्शाकिनीनां, सपदि हरपदं त्रिर्विशु द्धै र्विबुद्धैः; ग्लौं क्ष्मं ईं दिव्य जिह्ला, गतिमति कुपितं स्तम्भनं संविधेहि; फट् फट् सर्पादि रोगं, ग्रह मरणभयोच्चाटनं चैव पार्श्व; त्रायस्वाशेष दोषा, दमर नर वरैः संस्तुवे पार्श्वनाथम् । स्पाँ स्ी स्प॑ स्ौं स्फ्ः, प्रबल सु फलदं मन्त्र बीजं जिनेन्द्रम्; राँ रौं रौं रूँ रः, प्रमह महितं...पार्श्वदेवाधिदेवम्; क्राँ की . कौँ क्रः, ज ज ज ज ज जरा जर्जरी कृत्य देहं; धूं धूं धूं धूं धूं धूं धूं, ससम डुरित हं संस्तुवे पार्श्वनाथम्। इत्थं मन्त्राक्षरोत्थं, वचन मनुपमं पार्श्वनाथं सनित्यं; घो/ विद्वेषच्चाटनादि स्तंभन जयवशं पापरोगापनोदि, प्रोत्सर्पज्जंगमादि, स्थविर विषमुखं ध्वंसनं स्वायुदीधै; आरोग्यैश्चर्य युक्तो भवति यशः सुखं स्तौति तस्येष्ट सिद्धिः।

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