________________ लेखक के विचार - तपस्वी साधक प० जिनेशरत्नसागरजी मसा० और तन्त्र / मंदिर का जो शिल्प है वह यन्त्र है, स्तुति या प्रार्थना जो है। वह मन्त्र है और परमात्मा का अभिषेक केशर, चंदन पूजा या विलेपन आदि जो क्रिया है वह तन्त्र है। कोई भी दो द्रव्य मिलने से उसमें रासायनिक प्रक्रिया होती है और फलस्वरूप गुणधर्म में परिवर्तन होता है। इसीलिये विविध देशी जडी बूटियों से मिश्रित जल (अनेक नदियों एवं विविध कूप से प्राप्त) से परमात्मा का अभिषेक का आग्रह होता है। कोई भी नये या पुराने अपूजित प्रतिमा यन्त्र आदि को प्रतिष्ठित करने से पहले अभिषेक का विधान महत्वपूर्ण है। निश्चित रूप से हमारे पूर्वजों को इस सभी बातों का सम्पूर्ण ज्ञान था साथ में उनके पास आध्यात्मिक दृष्टि भी थी इसीलिये वे ऐसी रचना और विधि दे पायें कि जिससे जीव मात्र का कल्याण हो लेकिन नुकशान कदापि न हो, और हमें निर्दोष अहिंसात्मक ऊर्जा की प्राप्ति हुई। अतः विविध प्रकार के तीर्थादि के जल अभिषेक से विघ्नों और अशुचि का नाश होता है, और दूध के अभिषेक से आरोग्य, ऐश्वर्य, यश लाभ में वृध्धि होती है।