Book Title: Parmatma ka Abhishek Ek Vigyan
Author(s): Jineshratnasagar
Publisher: Adinath Prakashan

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Page 89
________________ जीव-अजीव का उन्हें सूक्ष्म ज्ञान था वनस्पति काटा को जीव-रूप जानते थे, उन्हें भेद कार्य प्रणाली गुण धर्म, त्रसकाय-बेन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय आदि जीवों के स्वरूप, स्वभाव, गुण-दोष आदि का सर्वांगीण ज्ञान था। इसीलिये हरएक जीव दूसरे जीव का पूरक कैसे बन सकता है यह भी जानते हैं।' अतः ऐसी अनेक विधियों का संयोजन किया जिससे कि शुभ भाव भी बना रहे और निर्विघ्न आत्म विकास का मार्ग सरल बने । ऐसी क्रिया विकसित कर सके कि क्रिया का फल सिर्फ शुभ ही हो नुकशान कदापि न हो। आयुर्वेद और एलोपेथी उपचार हम देख रहे हैं एक तरफ निर्दोष और कुदरती नियम के अधीन उपचार पद्धति है, तो दूसरी और हिंसक एलोपेथी इलाज जो अनेक मूल जीवों पर क्रूर अत्याचार जो कि कुदरत और धैर्य के बिलकुल विरुद्ध मत के आधार पर चल रहा है, फिर भी रोग घटने के बजाय विकुलस्वरूप धारण कर लेते हैं। परमात्मा का 1008 पुष्प मंत्र जाप सहित अर्पण ‘परमात्मा की भक्तिस्वरूप स्तोत्र-स्तुति श्रद्धा समर्पण है।' 'परमात्मा का ममंत्र जाप पुरुषार्थ है।' आध्यात्मिक और भौतिक विकास राजमार्ग है।

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