Book Title: Parmatma ka Abhishek Ek Vigyan
Author(s): Jineshratnasagar
Publisher: Adinath Prakashan

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Page 69
________________ षट्चत्वारिंशद्गुण संयुक्ताय, परमगुरूपरमात्मने, सिध्धाय, बुध्धाय, त्रैलोक्य परमेश्वराय, देवाय, सर्वसत्वहितकराय, धर्मचकाधीश्वराय, सर्वविद्यापरमेश्वराय, त्रैलोक्यमोहनाय, धरणेन्द्र पद्मावती सहिताय, अतुलबलवीर्यपराकमाय, अनेकदैत्यदानव कोटिमुकुट घृष्टपादपीठाय, ब्रह्मा-विष्णु-रूद्र-नारद-खेचरपूजिताय, सर्वभव्यजनानन्दकराय, सर्वजीवविघ्न निवारण समर्थाय, श्री पार्श्वनाथ देवाधिदेवाय, नमोऽस्तु ते श्री जिनराज पूजन प्रसादात् मम सेवकस्य सर्व दोष- रोग-शोक-भय-पीडा विनाशनं कुरू कुरू सर्व शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं कुरू कुरू स्वाहा। ॐ नमो श्री शान्तिदेवाय सर्वारिष्टशान्तिकराय हाँ ही हूँ हैं हः असिआउसा मम सर्वविघ्नशान्तिं कुरू कुरू श्री संघस्य (अमुकस्य) मम तुष्टिं पुष्टिं कुरू कुरू स्वाहा। श्री पार्श्वनाथ पूजनप्रसादाद् मम अशुभान् पापान् छिन्धि छिन्धि, मम अशुभकर्मोपार्जित दुःखान् छिन्धि छिन्धि, मम परदुष्टजनकृत मंत्र-तंत्र-दृष्टि-पुष्टि छलच्छिद्रादिदोषान् छिन्धि छिन्धि, मम अग्नि-चोर-जल-सर्प व्याधि छिन्धि छिन्धि, मारिकृतोपद्रवान् छिन्धि छिन्धि, सर्व भैरव देवदानव-वीरनरनार-सिंहयोगिनी कृतविघ्नान् छिन्धि छिन्धि, भुवनवासी व्यन्तर ज्योतिषी देवदेवीकृतदोषान् छिन्धि छिन्धि, अग्निकुमार कृतविघ्नान् छिन्धि छिन्धि, उदधिकुमार सनतकुमारकृत विघ्नान् छिन्धि छिन्धि, दीपकुमार यान छिन्धि छिन्धि, भिन्धि भिन्धि, वातकुमार मेघकुमार कृतविन्यान् छिन्धि छिन्धि, भिन्धि भिन्धि, इन्द्रादि दशदिक्पाल देवकृत विघ्नान् छिन्धि छिन्धि, जय-विजय, अपराजित माणिभद्र पूर्णभद्रादि क्षेत्रपाल कृतविघ्नान् छिन्धि छिन्धि, राक्षस-वैताल -दैत्य -दानव यक्षादि कृतविघ्नान् छिन्धि छिन्धि, नवग्रहकृत ग्रामनगरपीडां छिन्धि छिन्धि, सर्व अष्टकुलनागजनित विषभयान् सर्व ग्राम नगर दशरोगान् छिन्धि छिन्धि, सर्वस्थावर जंगम वृश्चिक दष्टि विषजाति- सर्पादिकृत विषदोषान् छिन्धि छिन्धि, सर्वसिंहाष्टापद व्याघ्र-व्याल वनचरजीवभयान् छिन्धि छिन्धि, परशत्रुकृत मारणो-च्चाटन-विद्वेषण-मोहन-वशीकरणादि दोषान् छिन्धि छिन्धि ।।

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