Book Title: Parmatma ka Abhishek Ek Vigyan Author(s): Jineshratnasagar Publisher: Adinath PrakashanPage 66
________________ सर्वकल्याणपूर्णः स्याद्, जरामृत्युविवर्जितः; अणिमादिमहासिध्धिं, लक्षजापेन चाप्नुयात्। प्राणायाममनो मन्त्र, योगादमृतमात्मनि; त्वामात्मनं शिवं ध्यात्वा, स्वामिन् सिध्धयन्ति। हर्षदः कामश्चेति, रिपुन्यः सर्वसौख्यदः; पातु वः परमानन्द, लक्षणः संस्मृतो जिनः । तत्वरूपमिदं स्तोत्रं, सर्वमंगल सिध्धिदम्; त्रिसन्ध्य यः पठेन्नित्यं, नित्यं प्राप्नोति स श्रियम् । -------------- ॐकार अक्षर जगत्गुरू सविहुं अक्षर बीज, अहं पास जिन नमो, रूपे माया बीज। चंद सूर देवह तणो, रतना रोहिणी भोग, मयण रहंती जेड तस, देजे तुम संजोग। कीजे मोहन वशीकरण, डाहरा मंत्र पसाय, चरणरक्त धरणेन्द्र कर, गौरी शंकर धाय। कर्पूरादिक पूजतां, रिध्धि वृध्धि दिये सार, बलवंती पद्मावती, षट् दरिशन आधार। जोयण मोहन वशीकरण, उपर चक फुरंत, मन के चिंते माणसे, ते पण पाय लागंत। ॐ नमो काली नागण, मुख वसे को वीस कंटो खाय, ह्रीं निलाडे वसे, को नवि सामु थाय। हथ मिले विण मुख मिले, मिलिया दुजण सत्तु, जो मे दुजण वशी कीया, सजण के हि मित्तु। ॐ लंकामई थरहरे, हणवो राम पभणेय, हुँ विहुं तुस माणसे, जो जल होम दियेण। ॐ डूमण कडणे डूमणी, बहू बहू कज कहेअ, (49)Page Navigation
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