Book Title: Parmatma ka Abhishek Ek Vigyan
Author(s): Jineshratnasagar
Publisher: Adinath Prakashan

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Page 40
________________ जगन्महा-मोहनिद्रा- प्रत्युष-समयोपमम् । मुनिसुव्रतनाथस्य, देशनावचनं स्तुमः। कमठे धरणेन्द्रे च स्वोचितं कर्म कुर्वति, प्रभुस्तुल्यमनोवृतिः पार्श्वनाथ श्रियेस्तुवः । श्रीमते वीरनाथाय सनाथायाद्भुतश्रियाः महानन्दसरोराज मरालायार्हते नमः। सर्वारिष्ट-प्रणाशाय सर्वाभिष्टार्थदायिने, सर्व लब्धिनिधानाय श्री गौतमस्वामिने नमः । अंगुठे अमृत वसे लब्धितणां भण्डार | श्री गुरू गौतम समरिये वांछित फल दातार । अर्हन्तो भगवन्त इन्द्र महिताः सिध्धाश्च सिध्धि स्थिता, आचार्या जिन शासनोन्नत्तिकरा, पूज्या उपाध्याया; श्री सिध्धान्त सुपाठकाः मुनिवरा रत्नत्रयाराधकाः, पंचै ते परमेष्ठिनं प्रति दिनं कुर्वन्तु वो मंगलं । मंगलं भगवान वीरो, मंगलं गौतम प्रभुः मंगलं स्थूलिभद्रद्या, जैनो धर्मोस्तु मंगलं । ॐ नमो जिणाणं शरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं हाँ हीँ हूँ हूँ ह्रीं हू: असिआउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रव शमनाय अर्हते नमः स्वाहा । 23

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