Book Title: Parmatma ka Abhishek Ek Vigyan
Author(s): Jineshratnasagar
Publisher: Adinath Prakashan

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Page 44
________________ ॐ पुण्याहं पुण्याहं प्रियन्तां प्रियन्तां। अर्हदादयो मयि प्रसन्ना भवन्तु भवन्तु। श्री सिध्धचक्राधिष्ठायक देवा-देव्यो-नाग-यक्ष-गण-गन्धर्व -वीर-ग्रह-लोकपालाश्च सानुकुला भवन्तु। समस्त साधु साध्वी श्रावक श्राविकाणां राजाऽमात्य-पुरोहित-सामन्त-श्रेष्ठि सार्थवाह प्रभूति समग्र लोकानां च स्वस्ति-शिव-शान्ति-तुष्टि -पुष्टि श्रेयः-समृध्धि वृध्धयो भवन्तु भवन्तु। चोरारि मारि रोगोत्पानीति-दुर्भिक्ष-डमर-विग्रह-ग्रह-भूत-पिशाच-मुद्गल -शाकिनी प्रभूति दोषाः प्रशाम्यन्तु। राजा विजयी भवतु भवतु । प्रजा स्वास्थ्यं भवतु भवतु। श्री संघो विजयी भवतु भवतु। ॐ स्वाहा । ॐ स्वाहा। भूः स्वाहा। भूवः स्वाहा। स्वः स्वाहा। ॐ भूर्भवः स्वः स्वाहा। शिवमस्तु सर्वजगतः, परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः। दोषाः प्रयान्तु नाशं, सर्वत्र सुखीभवतु लोकः ।। खामेमि सव्व ज वे। सव्वे जीवा खमंतु में।। मित्ती मे सव्वभूएसु। वेरं मज्झ न केणई। तीन नवकार गिनके संकल्प श्रीफल परमात्का को समर्पित करना। पुष्पाभिषेक मन्त्र : जल से आद्रित अन्जलि के अग्र भागमें रखकर मौन पूर्वक - ॐ नमोऽर्हद्भ्यः सिद्धेभ्यस्तीर्णेभ्यस्तारकेभ्यो बोधकेभ्यः सर्वजन्तु हितेभ्यः, इह कल्पनाबिम्बे भगवन्तोऽर्हतः सुप्रतिष्ठिताः सन्तु स्वाहा। पुनः जल से आद्रित पुष्प लिए बोलना – स्वागतमस्तु सुस्थितिरस्तु सुप्रतिष्ठास्तु स्वाहा। पुष्प प्रतिमा उपर चढाते हुए : अर्ध्यमस्तु पाद्यमस्तु आचमनीयमस्तु स्वाहा। हे...अभिषेक धारा शिर पर वहेती, थाये आखी पावन धरती; जीव अजीव ने जे शिव करती, सहुना मन वांछित पूरती।

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