Book Title: Parmatma ka Abhishek Ek Vigyan Author(s): Jineshratnasagar Publisher: Adinath PrakashanPage 46
________________ जे जन्म समये मेरू गिरि नी स्वर्णरंगी टोंच पर, लइ जइ तमोने देव ने दानव गणो भावे सभर; कोडो कनक कलशों वडे करता महा-अभिषेक ने, त्यारे तमोने जेमणे जोया हशे ते धन्य छ। चक्रे देवेन्द्रराजैः सुरगिरिशिखरे योऽभिषेकः पयोभिः, नृत्यन्तिभिः सुरीभिः ललितपदगमं तुर्यनादैः सुदीप्तैः। कर्तुं तस्यानुकारं शिवसुखजनकं मन्त्रपूतैः सुकुम्भैः, बिम्बं जैनं प्रतिष्ठाविधिवचनपरः स्नापयाम्यत्र काले।। श्री 24 तीर्थंकर विद्या ॐ ह्रीं श्रीं अहँ मैं ऋषभाय नमः ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो अरिहंताणं, ॐ ही श्री अहँ नमो सिध्धाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो आयरियाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो लोए सव्वसाहूणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो ओहिजिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो परमोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ सव्वोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ अणंतोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ केवली जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह ॐ नमो भगवओः अरहओ उसभसामिस्स सिज्जउ मे भगवई महई महाविज्जा ॐ ह्रीं नमो भगवओ अरिहओ उसभसामिस्स आइतित्थगरस्स जस्सेअं जलं तं गच्छइ चक्खं सव्वट्ठ (सव्वत्थ) अपराजियं, आयाविणी, ओहाविणी, मोहिणी, थंभिणी, जंभणी, हिलि, हिलि, कालि कालि, धारणी, चोराणं, भंडाणं, भोइयाणं, अहिणं, दाढिणं, सिंगीणं, नहीणं, चोराणं, चारियाणं, वेरिणं, जक्खाणं, रक्खसाणं, भूयाणं, पिसयाणं, मुंहबंधणं, गइबंधणं, चक्खुबंधणं, दिट्ठिबंधणं करेमि सव्वट्ठ सिध्धे ॐ ह्रीं ठःठःठः स्वाहा। ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह श्री अजितनाथाय नमः ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो अरिहंताणं, ॐ ही श्रीं अहँ नमो सिध्धाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो आयरियाणं,Page Navigation
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