Book Title: Parmatma ka Abhishek Ek Vigyan
Author(s): Jineshratnasagar
Publisher: Adinath Prakashan

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Page 29
________________ आतम भक्ति मल्या केइ देवा, केता मित्त नु जाइ; नारी प्रेर्या वळी निज कुळवट, धर्मी धर्म सखाइ। जोइस व्यन्तर भुवनपतिना, वैमानिक सुर आवे; अच्युतपति हुकम करी कळशा, अरिहाने नवरावे। अडजाति कळशा प्रत्येके, आठ आठ सहस प्रमाणो; चउसठ सहस हुवा अभिषेके, अढीसें गुणा करी जाणो; साठ लाख उपर एक कोडी, कळशानो अधिकार; बांसठ इन्द्र तणां तिहां बासठ, लोकपालना चार। चन्द्रनी पंक्ति छासठ, छासठ रवि श्रेणि नरलोको; गुरूस्थानक सुरकेरो एक ज, सामानिकनो एको; सोहमपति इशानपतिनी, इन्द्राणीना सोळ; असुरनी दश इन्द्राणी नागनी, बार करे कल्लोल। ज्योतिष व्यन्तर इन्द्रनी चउ चउ, पर्षदा त्रणनो अको; कटकपति रक्षक केरो , एक एक सुविवेको; परचुरण सुरनो एक छेल्लो, ए अढीसें अभिषको; इशान इन्द्र कहे मुज आपो, प्रभुने क्षण अतिरेको। तव तस खोळे ठवी अरिहाने, सोहमपति मनरंगे; ऋषभ रूप करी शंग जळ भरी, न्हवण करे प्रभु अंगे; पुष्पादिक पूजीने छांटे, करी केशर रंगरोले; मंगल दीवो आरती करतां, सुरवर जय - जय बोले। भेरी भुंगळ ताल बजावत, वळिया जिन कर धारी; जननी घर माताने सोंपी, एणे परे वचन उच्चारी; पुत्र तुमारो स्वामी हमारो, अम सेवक आधार; पंच धाइ रंभादिक थापी, प्रभु खेलावण हार।

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