Book Title: Parmatma ka Abhishek Ek Vigyan Author(s): Jineshratnasagar Publisher: Adinath PrakashanPage 19
________________ मानव विकास का आधार मानव विकास का आधार तीन बाबतों पर निर्भर करता है, यन्त्र-मन्त्र और तन्त्र। मंदिर का जो शिल्प है वह यन्त्र है, स्तुति या प्रार्थना जो है वह मन्त्र है और परमात्मा का अभिषेक केशर, चंदन पूजा या विलेपन आदि जो क्रिया है वह तन्त्र है। कोई भी दो द्रव्य मिलने से उसमें रासायनिक प्रक्रिया होती है और फलस्वरूप गुणधर्म में परिवर्तन होता है। इसीलिये विविध देशी जडी बूटियों से मिश्रित जल (अनेक नदियों एवं विविध कूप से प्राप्त) से परमात्मा का अभिषेक का आग्रह होता है। कोई भी नये या पुराने अपूजित प्रतिमा यन्त्र आदि को प्रतिष्ठित करने से पहले अभिषेक का विधान महत्वपूर्ण है। निश्चित रूप से हमारे पूर्वजों को इस सभी बातों का सम्पूर्ण ज्ञान था साथ में उनके पास आध्यात्मिक दृष्टि भी थी इसीलिये वे ऐसी रचना और विधि दे पायें कि जिससे जीव मात्र का कल्याण हो लेकिन नुकशान कदापि न हो, और हमें निर्दोष अहिंसात्मक ऊर्जा की प्राप्ति हुई। अतः विविध प्रकार के तीर्थादि के जल अभिषेक से विघ्नों और अशुचि का नाश होता है, और दूध के अभिषेक से आरोग्य, ऐश्वर्य, यश लाभ में वृध्धि होती है। नृत्यन्ति नृत्यं मणि पुष्प वर्ष, सृजन्ति गायन्ति च मंगलानि, स्तोत्राणि गोत्राणि पठन्ति मन्त्रान, कल्याण भाजो हि जिनाभिषेके। बड़ी शान्ति का पाठ हम हमेशा शुभ कार्यों में एवं खास करके स्नात्र के बाद जरूर करते हैं, जिसको शान्ति कलश भी कहते हैं। उसमें परमात्मा के अभिषेक का स्थान, विधि, महत्व और अभिषेक द्वारा विघ्नों का नाश एवं तुष्टि-पुष्टि, ऋद्धि-वृद्धि, शान्ति और मांगल्य का कारक बताया है। उसी स्तोत्र की 18वी गाथा में अभिषेक का वर्णन करते हुए लिखा है- नृत्य, मणियों आदि की वर्षा, पुष्पवृष्टि, शंखनाद, घंटनाद, विविध प्रकार के वाजिंत्र नाद, मंगलगीतगान, प्रभावी स्तोत्र पाठ एवं मन्त्रोच्चार सहित किया गया जिनेश्वरदेव का अभिषेक महाकल्याणकारी है।Page Navigation
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