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प्रथम पर्व र, पाखण्ड, दुर्जनता, क्षुधा, व्याधि, वेदना, जरा, भय, राग, शोक, हर्ष, जन्म मरणाद हत है। शिव अर्थात् अविनश्वर हैं । द्रव्यार्थिकनयसे जिनका आदि भी नाहीं और अंत भी
अछेद्य अभेद्य क्श रहित, शोकरहित, सर्वव्यापी, सर्वविद्य के ईश्वर हैं। यह उपमा औरोंको मी बने है । जो मीमांसक, सांख्य, नैयायिक, वैशेषिक, बौद्धादिक मत हैं । तिनके कर्जा जो पनि जैमिनि, कपिल, अक्षपाद, कणाद बुद्ध हैं बे मुक्तिके कारण नाहीं। जटा मृगछाला वन शसस्त्री रुद्राक्ष कपाल मालाके धारक हैं और जीवोंके दहन घातन छेदनविष प्रवृत्ते हैं। विरुद्ध प्रय कथन करनेवाले हैं। मीमांसक तो धर्मका अहिंसा लक्षण बताय हिंसावि प्रवृत्त है और
रब जो है सो शात्माको अकर्ता और निर्गुण भोक्ता माने है और प्रकृति हीको कर्ता माने है। पौर नैयायिक वैशेषिक आत्माको ज्ञानरहित जड माने हैं और जगतकर्ता ईश्वर माने हैं। और पर मंगुर माने हैं। शून्यवादी शून्य माने हैं। और वेदांतवादी एक ही आत्मा त्रैलोक्यमापी नर नारक देव तिर्यच मोक्ष सुख दुःखादि अवस्था विष माने हैं इसलिये ये सर्व ही मुक्तिके प्ररथ नहीं: मोक्षका कारण एक जिन शासन ही है जो सर्व जीवमात्रका मित्र है। और
बग्दर्शन, ज्ञान, चारित्रका, प्रकट करनेवाला है ऐसे जिन शासनको श्रीवीतराग देव प्रगटकर दिसाय है । वह सिद्ध अर्थात् जीवन्मुक्त हैं और सर्व अर्थकर पूर्ण हैं मुक्ति के कारण हैं सर्वोत्तम
और सम्यकदर्शन ज्ञान चारित्रके प्रकाश करनेवाले हैं इंद्रोंके मुकटोंकर स्पर्श गये हैं चरखाविंद जिनके ऐसे श्रीमहावीर वर्द्धमान सन्मतिनाथ अंतिम तीर्थकर तीनलोकके सर्व प्राणियों को महामंगल रूप हैं महा योगीश्वर हैं मोह मल्लके जीतनेवाले हैं अनंत बलके धारक हैं संसार
द्रविष डूब रहे जे प्राणी तिनके उद्धारके करनहारे हैं शिव विष्णु दामोदर त्र्यम्बक चतुर्मक दिनमा हरि शंकर रुद्र नारायण हरभास्कर परममूर्ति इत्यादि जिनके अनेक नाम हैं तिनको सकी प्रादिविष महा मंगलके अर्थ सर्व विघ्नके विनाशवे निमित्त मन बचन कायकर नमस्कार
हैं। इस अवसर्पिणी कालमें प्रथम ही भगवान श्रीऋषभदेव भए सर्व योगीश्वरोंके नाथ संवे विधाके निधान स्वयम्भू तिनको हमारा नमस्कार होहु । जिनके प्रसाद कर अनेक भब्य जीव
सागरसे तिरे । फिर श्रीअजितनाथ स्वामी जीते हैं वाह्य अभ्यंतर शत्रुजिन्होंने हमको मादिक रहित करहु । तीजे संभव नाथ जिनकरि जीवनको सुख होय और चौथे श्रीअभिनंदन कामी पानंदके करनहारे हैं और पांचवें सुमतिके देनहारे सुमतिनाथ मिथ्यात्वके नाशक और
बीपथप्रभु उगते सूर्यकी किरणों कर प्रफुल्लित कमलके समान है प्रभा जिनकी । सात पार्श्वनाथ स्वामी सर्वके वेत्ता सर्वज्ञ सवनके निकटवर्ती ही हैं शरद की पूर्णमासीके चंद्रमा मान है प्रभा जिनकी ऐसे आठवें श्रीचंद्रप्रभु ते हमारे भवताप हरो। और प्रफुणित इंदु
समान उन्चल हैं दंत जिनके ऐसे नवमे श्रीपुष्पदंत जगत के कंत हैं और दशवें श्रीशीवलहाथ धक ध्यानके दाता परम इष्ट ते हमारे क्रोधादिक अनिष्ट हरो। और जीवों को सकल नियंबके कर्चा धर्मके उपदेशक ग्यारहवें श्रेयांसनाथ स्वामी ते हमको परम भानंद को भीड मोकर पूज्य संतोंके ईश्वर कर्म शत्रु ओंके जीतनेहारे बारहवें श्रीवासज्य स्वामी को
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