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पांवर्ग पर्व न सेवने । हिंसाका बचन जिसमें पर जीवको पीड़ा होय सो न बोलना । हिंसा ही संसारका कारण है । चोरी न करना, सांच बोलना, स्त्रीकी संगति न करनी, धनकी वांछा न रखनी, सर्व पापारम्भ तनने, परोपकार करना, पर पीड़ा न करनी । यह मुनिकी आज्ञा सुनकर धर्मका स्वरूप जान राजा वैराग्यको प्राप्त भये । मुनिको नमस्कार कर अपने पूर्व भव पूछे। चार ज्ञानके थारक मुनि श्रुतिसागर संक्षेपताकर पूर्व भव कहते भये कि-'हे राजन् ! पोदनापुर, हित नाभाएक मनुष्य उसके माधवी नामा स्त्री उसके प्रीतम नामा तू पुत्र था अर उसी नगर में राजा उदयाचल राणी अहंश्री उसका पुत्र हैमरथ राज करे सो एक दिन जिन मन्दिर में महापूजा कर ई वह पूजा अानन्दकी करणहारी है । सो उसके जयजय कार शब्द सुनकर तने भी जयजयकार शब्द किया सो पुप उपार्जा । काल पाय मुना अर यक्षोंमें महायत हुवा । एक दिन विदेहक्षेत्र में कांचनपुर नगरके वन में मुनियों को पूर्व भवके शत्रुने उपसर्ग किया। यनने उनको डराकर भगा दिया अर मुनियोंकी रक्षा करी सो अति पुपकी राशि उपार्जी । कै एक दिनमें आयु पूरी कर यक्ष तडिदंगद नामा विद्याधरकी श्रीप्रभा स्त्रीके उदित नामा पुत्र भया । अमरविक्रम विद्याधरोंके ईश वंदनाके निमित्त मुनिके निकट आये थे उनको देखकर निदान किया। महा तपकर दूसरे स्वर्ग जाय वहांसे चयकर तू मेघवाहनके पुत्र हुवा । हे राजा ! तूने सूयके स्थकी न्याई संसार में भ्रमण किया। जिह्वाका लोलुपी स्त्रियोंके वशवर्ती होय अनन्त भव धरे । तेरे शरीर इस संसार में एते व्यतीत भये जो उनको एकत्र करिये तो तीनलोकमें न समावें र सागरोंकी आयु स्वर्गमें सेरी भई। जय स्वर्गहीके भोग से तू तृप्त न नया तो विद्याधरोंके अल्प भोगसे तू कहा तृप्त होय । अर तेरा अयु भी अब आठ दिनका बाकी है इसलिये स्वप्न इन्द्रमाल समान जे भोग उनसे निवृत्त हो । ऐसा सुन अपना मरण जाना तो भी विषादको न प्राप्त भये। प्रथमो जिन चैत्यालपमें बड़ी पूजा कराई पीछे अनन्न संसारके भ्रमण से भयभीत होकर अपने बड़े पुत्र अमरक्षको राज देय अर लघु पुत्र भानुरजको यु राज पद देय आप परिग्रहको त्याग कर तत्त्वज्ञान में मग्न भये । पाषाणके थंभ तुल्य निश्चल हाय ध्यानमें रिष्ठ अर लोभकर रहित भये । खान पानका त्याग कर शत्रु भित्र समान बुद्धिधार निश्चल कर मौनयतके धारक समाधि मरण कर स्वर्गविष उत्तम देव भये।
अथानन्तर किन्नरनादनामा नगरी श्रीधर नामा विद्याधर राजा उसके विद्यानामा राणी उसके अरिजयानामा कन्या सो अमररक्षने परणी अर गंधर्वगीत नगरमें सुरसनिम राजा उसके राणी गंधारी की पुत्री गंधर्वा सो भ नुरक्षने परणी: बड़े भाई अमररक्षके दश पुत्र अर देवांगना समान छह पुत्री भई जिनके आभूषण गुण ही हैं अर लघु भाई भानु क्षके दश पुत्र अर छह पुत्री भई सो उन पुत्रोंने अपने अपने नामसे नगर बसाए । वे पुत्र शत्रु ओंके जीतनेहारे पृथ्वीके रक्षक हैं उन नगरोंके नाम सुनो । सन्ध्याकार १ सुदेव २ मनोह्लाद ३ मनोहर ४ हंसद्वीप ५ हरि ६ योध ७ समुद्र ८ कांचन : अर्धस्वा १० ए दश नगर तो अमररक्षके पुत्रोंने बसाये अर श्रावत नगर १ विघट २ अम्भोद ३ उतकट ४ स्फुट ५ रितुग्रह ६ तट ७ तोय ८
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