Book Title: Padma Puranabhasha
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: Shantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 537
________________ पद्म-पुराण लाप होय रहे हैं तरवार वहे है भूमिगोचरी विद्याधर सब ही आए हैं भामंडल पवनवेग वीर मृगांक विद्युद्ध्वज इत्यादि बड़े बड़े राजा विद्याधर बडी सेनाकर युक्त महारणमें प्रवीण सो लवण अंकुश के समाचार सुन युद्धसे पराङ मुख शिथिल होय गये अर सब बातोंमें प्रवीण हनूमान सो भी सीताके पुत्र जान युद्धसे शिथिल होय रहा अर विमान के शिखिरमें आरूढ़ जानकी को देख सब ही विद्याधर हाथ जोड शीश नवाय प्रणाम कर मध्यस्थ होय रहे सीता दोनों सेना देख रोमांव होय आई, कांपे है अंग जाका । लवण अंकुश लहलहाटकरे हैं ध्वजा जिनकी राम लक्ष्मणस युद्धको उद्यमी भए । रामके सिंहकी ध्वजा लक्ष्मणके गरुडकी सो दोनों कुमार महा.योधा राम लक्ष्मणसे युद्ध करते भए । लवण तो रामसे लडे पर अंकुश लक्ष्मणसे लडे सो लवणने आवते ही श्रीरामको ध्वजा छेदी पर धनुष तोडा तब राम हंसकर और धनुष लेयवेको उद्यमा भया । इतन में लवणने रामका रथ ताडा त राम और रथ चढ प्रचण्ड है पराक्रम जिसका क्रोधकर भृकुटी चढाय ग्रीष्मके सूर्य समान तेजस्वी जैसे चमरेन्द्र पर इन्द्र जाय तैसे गया तब जानकीका नन्दन लवण युद्धकी पाहनिगति करनेको रामके सन्मुख आया रामके अर लवणके परस्पर महा युद्ध भया। वान वाके शस्त्र छेदे वाने वाके जैसा युद्ध रामअर लषणका भया तैसा ही अंकुश अर लक्ष्मण का भया । या भांति परस्पर दोनों युगल लड़े तब योधा भी परस्पर लडे घोडोंके समूह रणरूप समुद्र की तरंग समान उछलते भये । कोई एक योधा प्रतिपक्षीको टूटे वखतर देख दयाकर मौन गह रहा अर कैयक योधा मने करते परसेनामें पैठे सो स्वामीका नाम उचारते परचक्रसे लडते भये कैयक महा भट माते हाथियों से भिडते भये कैयक हाथियोंके दांत रूप सेजपर रणनिद्रा सुख से लेते भये काहू एक महा भटका तुरंग काम आया सो पियादा ही लडने लगा काहू के शस्त्र टूट गए तो भी पीछे न होता भया हाथोंसे मुष्टि प्रहार करता भया अर कोई एक सामन्त वाण वाहने चुक गया उसे प्रतिपक्षी कहता भया बहुरि चलाय सो लज्मा कर न चलावता भया अर कोई एक निर्भय चित्त प्रतिपक्षीको शस्त्र रहित देख आप भी शस्त्र तज भुजाओंसे युद्ध करता भया। ते योधा बडे दाता रण संग्राममें प्राण देते भये परन्तु पीठ न देते भये जहां रुथिरकी कीच होय रही है सो रथोंके पहिये डूब गये हैं सारथी शीघ्र ही नहीं चला सकै हैं । परस्पर शस्त्रों के सम्मान कर अग्नि पड रही है अर हाथियों की सूडके छांटे उछेले हैं । अर सामन्तोंने हाथियों के कुम्भस्थल विदारे हैं सामन्तोंके उरस्थल विदारे हैं हाथी काम आय गये हैं तिनकर मार्ग रुक रहा है अर हाथियों के मोती विखर रहे हैं वह युद्ध महाभयंकर होता भया जहां सामन्त अपना सिर देयकर यशरूप रत्न खरीदते भए जहां मूर्छित पर कोई घात न करे अर निर्वल पर घात न करे सामन्तोंका है युद्ध जहां महायुद्धके करणहारे योधा जिनके जीवनेकी आशा नाहीं क्षोभको प्राप्त भया समुद्र गाजे तैमा होय रहा है शब्द जहां सो वह संग्राम समरस कहिये समान रस होता भया । __भावार्थ-न वह सेना हटी न वह सेना हटी योधानिमें न्यूनाधिकता परस्पर दृष्टि न पडी । कैसे हैं योधा ? स्वामी में हैं परम भक्ति जिनकी पर स्वामीने आजीविका दई थी उसके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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